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________________ स्वयं पूर्णिमागच्छ के होते हुए भी खरतरगच्छ के मन्त्री कर्मचन्द बच्छावत के अनुरोध पर इस काव्य की रचना यह प्रकट करती है कि उस समय में गच्छों का और आचार्यों का अपने गच्छ के प्रति कोई विशेष आग्रह नहीं था। मुक्त हृदय से दूसरे गच्छों के श्रावकों के अनुरोध पर भी साहित्यिक रचना किया करते थे। यह हेमरत्न का उदार दृष्टिकोण था। अपनी गच्छ की क्रिया करते हुए भी दूसरे गच्छों के प्रति सहृदय भाव रखते थे। इस प्रश्नोत्तर काव्य में 121 अथवा 124 पद्य हैं। कवि ने इस लघु कृति में अनुष्ठप्, उपजाति, वंशस्थ, भुजङ्गप्रयात, शार्दूल विक्रीड़ित, और स्रग्धरा आदि छन्दों का स्वतन्त्रता से प्रयोग किया है। यह प्रश्नोत्तर काव्य है। जिसमें श्लोक के अन्तर्गत ही प्रश्न और उत्तर प्रदान किए गए हैं। इसमें प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक के समान श्लोक के पश्चात् अनेकविध जातियों में संक्षिप्त उत्तर नहीं लिखे हैं। काव्यगत अलङ्कार विधान प्रस्तुत करना इस छोटे से लेख में सम्भव नहीं है। इसकी प्राचीनतम दो प्रतियाँ राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में प्राप्त हैं जिनके क्रमशः नम्बर इस प्रकार हैं:- 20087 एक प्रति कवि द्वारा स्वलिखित है, दूसरी प्रति उसकी प्रतिलिपि ही है। जिसमें दो श्लोक प्रशस्ति के रूप में विशेष रूप से प्राप्त होते हैं। दूसरी प्रति में प्रशस्ति पद्य 2 में कवि हेमरत्न को भी आचार्य माना. गया है। प्रति का पूर्ण परिचय इस प्रकार है: प्रति की क्रमाङ्क संख्या 20087, इस प्रति की साइज 25410.9 से.मी. है। पत्र संख्या 4 है। प्रति पृष्ठ पंक्ति 17 और प्रति पंक्ति अक्षर 52 है। विक्रम संवत् 1638 की स्वयं लिखित प्रति है। ____दूसरी प्रति का क्रमाङ्क नम्बर प्राप्त नहीं कर सका हूँ। कवि की अन्य रचनाएँ हेमरत्न प्रणीत संस्कृत भाषा में अन्य कृतियाँ प्राप्त नहीं हैं, किन्तु राजस्थानी भाषा में इनकी कई कृतियाँ प्राप्त हैं। इसमें से 'गोरा बादिल चरित्र' ऐतिहासिक चौपई ग्रन्थ है। इस चौपई ही रचना 1645 सादड़ी में की गई है और ताराचन्द कावड़िया के अनुरोध से इस रचना का निर्माण हुआ है। ताराचन्द कावड़िया महाराणा प्रताप के अनन्यतम साथी, मेवाड़ के सजग प्रहरी, दानवीर और इतिहास प्रसिद्ध भामाशाह के छोटे भाई थे तथा उस समय सादडी में विशिष्ट अधिकारी थे। कवि स्वयं लिखता है: पूनिमगछि गिरुआ गणधार, देवतिलक सूरीसर सार। न्यानतिलक सूरीसर तास, प्रतपई पाटइ बुद्धिनिवास॥ 610 // पदमराज वाचक परधांन, पुहवी परगट बुद्धि-निधान। तास सीस सेवक इम भणइ, हेमरतन मनि हरषइ घणइ॥६११॥ संवत सोलइ-सई पणयाल, श्रावण सुदि पंचमि सुविसाल। पुहवी पीठि घणुं परगडी, सबल पुरी सोहइ सादडी॥६१२॥ पृथ्वी परगट 'रांण प्रताप', प्रतपइ दिन-दिन अधिक प्रताप। तस मंत्रीसर बुद्धिनिधांन, कावेड्यां कुलि तिलक समांन॥ 613 // सांमिधरमि धुरि 'भांमुसाह', वयरी-वंस विधुंसण राह। तस लघु भाई ताराचंद, अवनि जाणि अवतरीउ इंद्र // 614 // ताराचन्द कावड़िया के सम्बन्ध में पुरातत्वाचार्य पद्मश्री मुनि जिनविजयजी 'गोरा बादिल चरित्र' के 'एक पर्यालोचन' पृष्ठ 5 पर लिखते हैं:लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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