________________ प्रवर्तिनी मेरुलक्ष्मी के स्तोत्र __ प्रस्तुत दोनों स्तोत्रों की प्रणयित्री प्रवर्तिनी मेरुलक्ष्मी गणिनी साध्वी हैं। मेरे संग्रह की 6 पत्रों की प्रति जो अनुमानतः १६वीं शताब्दी की लिखी हुई है, उसमें चार स्तोत्र अञ्चलगच्छेश शीलरत्नसूरिकृत हैं, और दो प्रवर्तिनी मेरुलक्ष्मी गणिनी के। अतः संभवतः रचयित्री का समय १६वीं शती या तत्पूर्व है, और प्रवर्तिनी अंचलगच्छ की ही होगी। इनके सम्बन्ध में विशेष कुछ भी ज्ञात नहीं है। प्रवर्तिनी, गणि' शब्द होने से इतना तो स्पष्ट है कि साध्वी महोदया गणनायिका अवश्य थी और यह रचना उनकी प्रौढ़ावस्था की ही है। ये दोनों स्तोत्र आदिनाथ और तारंगामण्डन अजितनाथ के हैं। 7 और 5 पद्य संख्या की दृष्टि से तो स्तोत्र बहुत ही छोटे हैं परन्तु लघुकाय होते हुए भी सरस और प्रवाहपूर्ण हैं, इनकी भाषा भी प्राञ्जल है। प्रथम स्तोत्र में द्रुतविलंबित, वंशस्थ, वसन्ततिलका और शार्दूलविक्रीडित आदि छन्दों की योजना होने से मालूम होता है कि प्रणयित्री छन्दःशास्त्र और साहित्यशास्त्र की भी विदुषी थी। 1. आदिनाथ स्तवनम् सकलमङ्गलदं रुचिरच्छविं, दुरितशैलविभेदनसत्पविम्। जिनवरं नृपनाभितनूरुहं, विपुलसौख्यकरं प्रणमाम्यहम्॥१॥ स्वर्णाभं गुणभासुरं धृतशमं ज्ञानश्रियालङ्कृतं, सम्यक्पुण्यपथप्ररूपणपरन्यायव्रतत्यम्बुदम्। . शक्रवातसुसेव्यमानचरणाम्भोजद्वयं सन्ततं, वन्देऽहं त्रिजगद्गुरुं गुरुतरं मोहान्धकारे रविम्॥२॥ निखिलसौख्यमहार्णवसद्विधुं, गुणसितच्छदखेलनमानसम्। प्रशमसिन्धुरवन्ध्यमहीधरं, जिनपतिं प्रणमामि वृषाङ्कितम्॥३॥ यशः श्रिया निर्जितचन्द्रदीधिति, ध्यानामलज्चालितकर्मसन्ततिम्। नीरागतादूरितभावविद्विषं, सेवे युगादीशजिनं महात्विषम्॥४॥ वैराग्यमानसरोवरराजहंसं, प्रौढप्रभासुरनरेशशिरोऽवंतसं, इक्ष्वाकुवंशतिलकं भुवनाभिरामं, कामं दधामि हृदये प्रथमं जिनेशम्॥५॥ सन्ततं जलजतायुतमत्र, पङ्कजं च शशिनं च विमुच्य। अद्वितीयकमलापदपद्मं, सेवे ते तव विभो! गतदोषम्॥६॥ एवं श्रीऋषभं गुरूत्तमगुणं यः स्तौति भक्त्यान्वहं, भव्याम्मोजविकाशनग्रहपतिं स्फारप्रभाशालिनम्। तस्यानन्दविधायिनी प्रतिदिनं मेरुस्थितिस्थेयसी, लक्ष्मीर्वेश्मनि रंरमीति जनता पुष्पप्रतिष्ठोदया॥७॥ इति प्रव० मेरुलक्ष्मीगणिकृतं श्रीआदिनाथस्तवनम्। लेख संग्रह 65