SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (3) मेरुचन्द्र ने यवनभूपति को प्रतिबोध देकर कारागार में रहे गये यतियों को छुड़ाया। यह एक नवीन तथ्य है। वह यवनभूपति कौन था? कहाँ का था? और उसने किस कारण से यतियों को जेल में डाला था? आदि प्रश्नों पर, प्रशस्ति में नाम और स्थान का उल्लेख न होने से कोई प्रकाश नहीं पड़ता है। इतिहास के शोधविद्वानों का कर्तव्य है कि इस पर शोध करके प्रकाश डालें। (4) इन टीकाओं के संशोधकों में वाडव ने दो नाम दिये हैं - (1) श्रीमाणिक्यसुन्दरसूरि और (2) विराटनगरीय मन्त्री पंचानन। श्री माणिक्यसुन्दरसूरि का समय लगभग 1435 से 1500 के मध्य का है। ये संस्कृत के मूर्धन्य विद्वान् रहे हैं और गुजराती भाषा के प्राचीन लेखकों में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी दो कृतियाँ श्रीधरचरित्र महाकाव्य (1485) और गुणवर्माचरित्र (1485) राजस्थान प्रदेश में ही रचित है। इनके विशेष परिचय के लिये अंचलगच्छीय दिग्दर्शन द्रष्टव्य है। (5) विराट का इतिहास प्रकाशित न होने से मन्त्री पंचानन के सम्बन्ध में प्रकाश डालना सम्भव नहीं है किन्तु इतना निश्चित है कि पंचानन संस्कृत काव्य, लक्षण-शास्त्र का धुरन्धर विद्वान् था। जैन था और विराट नगर का मंत्री भी। (6) यहाँ एक प्रश्न विद्वानों के लिये अवश्य ही विचारणीय है कि 'मन्त्रिपञ्चाननैन च' शब्द स्वतन्त्र व्यक्तित्व का सूचक है या टीकाकार वाडव का विशेषण? यदि स्वतन्त्र व्यक्तित्व का सूचक है तब तो पूर्वोक्त अर्थ ठीक ही है कि विराटनगरीय मन्त्री पंचानन ने इस समस्त टीका ग्रन्थों का संशोधन किया। और यदि इस शब्द को वाडव का विशेषण मानें तो. मन्त्रियों में पंचानन अर्थात सिंह के समान वाडव ने इस ग्रन्थों पर अवचूरियाँ की हैं, यह अर्थ भी ग्रहण किया जा सकता है। इस अर्थ के आलोक में वाडव को ही विराटनगर का मंत्री मान सकते हैं। इस प्रश्न पर निर्णय करना विद्वच्छ्रेष्टों का कार्य है। इस ऊहापोह से यह तो स्पष्ट है कि विराटनगरीय वाडव का समय १५वीं शती का उत्तरार्द्ध है। वाडव जैन है, विद्वान् है। और उस समय (१५वीं शती) विराटनगर में अंचलगच्छीय श्वेताम्बर जैनों का प्रभाव था, बाहुल्य था, मंत्री भी जैन श्रावक था। वाडव की अन्य कृतियाँ जो अप्राप्त हैं उसके लिये शोध विद्वानों का कर्त्तव्य है कि खोज करके अन्य ग्रन्थों को प्राप्त करें और वाडव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विशेष प्रकाश डालें। ' [श्री आचार्य कल्याण गौतम स्मृति ग्रन्थ] .000 64 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy