________________ विराट नगर का एक अज्ञात टीकाकार-वाडव जैन श्वेताम्बर उपासक वर्ग के इने-गिने साहित्यकार-कवि पद्मानन्य ठक्कुर फैरू, मन्त्री मण्डन, मन्त्री धनद आदि के साथ टीकाकार वाडव का नाम भी गौरव के साथ लिया जा सकता है। वाडव जैन श्वेताम्बर अचलगच्छीय उपासक श्रावक था। वह विराट् नगर वर्तमान वैराड (अलवर के पास, राजस्थान प्रदेश) का निवासी था। संस्कृत साहित्य-शास्त्र और जैन-साहित्य का प्रौढ़ विद्वान् एवं सफल टीकाकार था। इसका समय वैक्रमीय पन्द्रहवीं शती का उत्तरार्द्ध है। इसने अनेक ग्रन्थों पर टीकायें लिखी थीं किन्तु दुःख है कि आज न तो उसका कोई ग्रन्थ ही प्राप्त है और न जैन इतिहास या विद्वानों में उल्लेख ही प्राप्त है। वाडव की एकमात्र अपूर्ण कृति 'वृत्तरत्नाकर अवचूरि' (१५वीं शती के अन्तिम चरण की लिखी) मेरे निजी संग्रह में है। इसकी प्रशस्ति के अनुसार वाडव ने जिन-जिन ग्रन्थों पर टीकायें लिखी हैं, उसके नाम उसने इस प्रकार दिये हैं - (1) कुमारसम्भव काव्य अवचूरि (2) मेघदूत काव्य अवचूरि (3) रघुवंश काव्य अवचूरि (4) माघ काव्य अवचूरि किरातार्जुनीय काव्य अवचूरि (6) कल्याण मंदिर स्तोत्र अवचूरि भक्तामर स्तोत्र अवचूरि जयइ नवनलिन तृतीयसंस्मरणं अवचूरि 'वामेय' पार्श्वस्तोत्र अवचूरि (10) प्रभु जीरिका, स्तोत्र अवचूरि सकलसुखनामक स्तोत्र (नवम स्मरणं) अवचूरि . (12) त्रिपुरा स्तोत्र अवचूरि (13) वृत्तरत्नाकर अवचूरि (14) वाग्भट्टालंकार अवचूरि (15) विदग्धमुखमण्डन अवचूरि योगशास्त्र (4 अध्याय) अवचूरि (17) वीतराग स्तोत्र अवचूरि पूर्ण प्रशस्ति इस प्रकार है - प्रथमं कुमारसम्भव इति तस्मान्मेघदूतकः पुरतः। रघुनाथचरितपूतो रघुवंशः कालिदासकृतिः॥१॥ लेख संग्रह (9) 62