________________ 1. चित्शक्ति पुरुष को ज्ञान से शून्य मानना परस्पर विरुद्ध है। 2. . बुद्धि महत् का जड़ मानना ठीक नहीं है। अहंकार को भी आत्मा का ही गुण मानना चाहिये, बुद्धि का नहीं। 3. सत्कार्यवाद मानने वाले सांख्य लोगों का आकाश आदि का पाँच तन्मात्राओं से उत्पत्ति मानना असंगत है। 4. बंध पुरुष को ही मानना चाहिये, प्रकृति को नहीं। 5. वाक्, पाणि आदि को पृथक् इन्द्रिय नहीं कह सकते, इसलिये पाँच ही इन्द्रियाँ माननी चाहिये। 6. केवल ज्ञान मात्र से मोक्ष नहीं हो सकता। श्लोक 15-19 - इन चार पद्यों में न्याय-बिन्दु, न्याय-बिन्दु टीका प्रज्ञाकरगुप्त, दिङ्नाग, मोक्षाकरगुप्त आदि के उद्धरणों के साथ बौद्ध दर्शन की सौत्रान्तिक, वैभाषिक और योगाचार परम्परा मान्य निम्नांकित क्षणिकवाद, शून्यवाद, वासना को सम्यक् प्रकार से परीक्षण कर दूषित सिद्ध किया 1. प्रमाण और प्रमाण के फल के सर्वथा भिन्न न मानकर कदाचित् भिन्नाभिन्न मानना चाहिये। 2. सम्पूर्ण पदार्थों को एकान्त रूप से क्षणध्वंसी न मानकर उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य सहित स्वीकार करना चाहिये। 3. पदार्थों के ज्ञान में तदुत्पत्ति और तदाकारता को कारण न मानकर क्षयोपशमरूप योग्यता को ही कारण मानना चाहिये। 4. बिज्ञानवादी बौद्धों का विज्ञानाद्वैत मानना ठीक नहीं है। प्रमाता, प्रमेय आदि प्रत्यक्ष और प्रमाणों से सिद्ध होते हैं। इसलिये माध्यमिक बौद्धों का शून्यवाद युक्तिसंगत नहीं है। 6. बौद्धों के क्षणभंगवाद में अनेक दोष आते हैं, अतः क्षणभंगवाद का सिद्धांत दोषपूर्ण है। 7. क्षणभंगवाद की सिद्धि के लिये नाना क्षणों को परम्परारूप मानना भी ठीक नहीं। तथा - क) नैयायिकों के प्रमाण और प्रमिति में एकान्त-भेद नहीं बन सकता। ख) आत्मा की सिद्धि। ग) सर्वज्ञ की सिद्धि। श्लोक 20 - इसमें चार्वाक दर्शन की अयुक्त मान्यताओं का निराकरण किया गया है। श्लोक 21-29 - पूर्वोक्त 17 पद्यों में न्याय-वैशेषिक, योग, पूर्वमीमांसा, अद्वैतवाद, सांख्य, बौद्ध एवं चार्वाक दर्शनों के प्रमुख-प्रमुख सिद्धान्तों/मान्यताओं पर ऊहापोह एवं समीक्षा करने के पश्चात् इन 9 पद्यों में स्वपक्ष/जैनदर्शन की मान्यताओं की स्थापना/समर्थन करते हुए जैन दर्शन की मौलिक भित्ति स्याद्वाद की सयुक्तिक, सप्रमाण सिद्धि की गई है। साथ ही निम्नांकित सिद्धान्तों का सविस्तार प्रतिपादन किया गया है:१. प्रत्येक वस्तु, उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त है। द्रव्य की अपेक्षा वस्तु में ध्रौव्य और पर्याय की . अपेक्षा सदा उत्पाद और व्यय होता है। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य परस्पर सापेक्ष हैं। लेख संग्रह