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________________ स्याद्वादमञ्जरी तार्किक युग के सर्वोत्कृष्ट जैन विद्वान हैं श्रुतकेवलीतुल्य आचार्य सिद्धसेन दिवाकर। इन्होंने न्याय-प्रधान तार्किक शैली में श्रमण भगवान् महावीर की स्तुति के माध्यम से अनेक द्वात्रिंशिकाओं की रचना की, जिनमें से 21 द्वात्रिंशिकाएँ प्राप्त हुई हैं। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के अनुकरण पर तर्कप्रधान दार्शनिक शैली में चिन्तन और भक्ति का सुन्दरतम/अनुपम समन्वय करते हुए कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र ने भी भगवान महावीर की स्तुति के माध्यम से दो द्वात्रिंशिकाओं की रचनाएँ की 1. अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका और 2. अयोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका। अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका पर ही श्री मल्लिषेणसूरि ने 'स्याद्वादमंजरी' नामक टीका की रचना की है। यह पर ऐसी अनुपम सौभाग्यशालिनी रचना है कि टीका करते हुए भी स्वतन्त्र मौलिक कृति की प्रतीति के रूप में 'स्याद्वादमंजरी' के नाम से साहित्य-जगत में प्रसिद्ध है। कृतिकार हेमचन्द्र इनके जीवनवृत्त के सम्बन्ध में स्वरचित ग्रन्थों एवं परवर्ती आचार्यो/लेखकों द्वारा लिखित निम्नांकित ग्रन्थों में प्रचुर एवं प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध है:१. व्याश्रय काव्य हेमचन्द्रसूरि 2. सिद्धहेमशब्दानुशासन प्रशस्ति हेमचन्द्रसूरि 3. परिशिष्ट पर्व हेमचन्द्रसूरि 1172 4. कुमारपाल प्रतिबोध सोमप्रभसूरि 1241 5. प्रभावक चरित प्रभाचन्द्रसूरि 1334 6. प्रबन्ध चिन्तामणि मेरुतुंगसूरि 1361 7. प्रबन्धकोश राजशेखरसूरि 1405 8. लाइफ आफ हेमचन्द्र डॉ. बूल्हर 9. हेमचन्द्राचार्य धूमकेतु 1946 ई. 10. आचार्य हेमचन्द्र डॉ. वि. भा. मुसलगांवकर 1971 ई. इन्हीं ग्रन्थों के आलोक में इनके जीवन की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत है। . जीवनवृत्त - धुन्धुका नगर (गुजरात) में वि. सं. 1145 कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को इनका जन्म हुआ था। मोढवंशीय वैश्य थे। इनके पिता का नाम चाचिग और माता का नाम पाहिणी/चाहिणी देवी था। जन्म नाम चांगदेव था। चांगदेव जब गर्भ में थे तब उनकी माता ने शुभस्वप्न देखा था- एक आम का सुन्दर वृक्ष स्थानान्तर से अधिक फलवान बन गया अथवा चिन्तामणि रत्न प्राप्त हुआ जिसे गुरु को अर्पित कर दिया। चांगदेव बाल्यावस्था में ही माता के साथ मन्दिर जाया करते थे और गुरुजनों के प्रवचनों का श्रवण 1889 ई. लेख संग्रह 43
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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