________________ प्रणेता का नाम न होने पर भी कृतिरियं श्री जिनप्रभसूरीणां लिखा हो और उसी के आधार से उन्हीं की यह कृति मानी जाती हो, अतः यह कृति जिनप्रभसूरि की मानने में कोई आपत्ति नहीं है। पद्य 12 दूसरे चरण में सबलकर-भु (भू) रुहकुंजर के स्थान पर सबलकलिभूरुहकुञ्जर और चतुर्थ चरण में मम भुरुहकुंजर ( ?) / के स्थान पर मम केवलिकुञ्जर प्राप्त है। जिनप्रभसूरि के सम्बन्ध में मेरे द्वारा लिखित शासनप्रभावक आचार्य जिनप्रभ और उनका साहित्य पुस्तक द्रष्टव्य है। [अनुसंधान अंक 34] 000 लेख संग्रह