________________ नाभिनरिंद मल्हार, मरुदेवि माडिउ उरि रयणु। अविगतरूपु अपार, सामी सेत्रुजसई धणिय।। 1 / / सोवण वन्न सरीर, तिहुअण तारण वेडुलिय। मारि वीडारण वीर, सुणि सामी मुज्झ वीनती य।। 2 / / जिण अतिसय चउतीस, जे सिद्धतिहिं वण्णविय। ते समरउं निसि दीस, जिमउ लग लागइ भलीय।। 3 / / रोग न लागइ अंगि, रंगिइं सुरवर पइं नमइं। भमर भमइं चहु भंगि, तुह मुह परिमल मिलिय मण।। 4 / / मंस रुहिर तह वेउ, दुद्धधार जिम हुइ धवल। अंगि न लांगइ सेउ, तणु पुणु निम्मल न्हाण विणु।। 5 / / जिण आहार करंत, नवि दीसइ नीहार पुण। चउ मुह धम्मु कहंति, वाणी जोजण गामिणिय।। 6 / / समोसरणि संमाइ; कोडि संख सुरनर-तिरिय। कांटा ऊंधा थाई, फूल पगर गूडा समउ।। 7 / / एक सरीखी वाणि, पारी छई सुरनर तिरिय। सय-पणवीसपमाण, दह दिसि संकट उपसमई।। 8 / / सा तइ इंति समंति, वयरु वली जइ वइरियहं / मारिण जान मारंति, देसि दुकाल तपइ सरए।। 9 / / दीस इग पणि फुरंत, धम्मचक्क तुह जिण प्रवर। भामंडलु झलकंति, सिर पाखलि थिउ संचरए।। 10 / / परमेसर पयहेठि, सुर संचारइ नव कमल / सत्रु मित्र समदृष्टि, रयण सिंघासण बइसणु ए।। 11 / / इंद्र-धजा आकासि, अन प्रभ पाखलि त्रिन्नि गढ। 'गंधोदक वरिसंति, पुष्पवृष्टि सुरवर करई / / 12 / / त्रिन्नि प्रदक्षिण दिति, तुह पाखलि सवि पंखियहं / चिहु पखि चमर ढुलंति, चेई तरुअर वीर गुणउ।। 13 / / तरुअर अहलु ढुलंति, एव मु फरक्कइ कोमलउ। अनवाई वाजंति, दह दिसि दुंदुहि देव किय।। 14 / / कुसुम तणी परि देह, जनम लगइ परिमल बहुल। कोइ न पामइं छेह, असंख्यात जिणवर गुणहं / / 15 / / अणहूंतई इक कोडि, समोसरण सुर पामीयए। वाजिनं कोडा-कोडि, अणवाई वाजइं गयणि।। 16 / / रोम राय नह केस. व्रत लीधइ वाधइन हि य। पाप प्रमाद प्रवेसु, करइ न जिणवर सयरि खणु / / 17 / / लेख संग्रह 359