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________________ के शीलभद्रसूरि के शिष्य धर्मघोषसूरि ने की थी। सं० 1233 में शहाबुद्दीन गौरी ने मूर्ति का अंग-भंग किया, तथापि प्राचीन एवं देवाधिष्ठित होने के कारण यही मूर्ति मूलनायक के रूप में ही रही। पुरातन-प्रबन्ध-संग्रह के अनुसार पारस श्रेष्ठि ने वाद विजेता वादीदेवसूरि के तत्त्वावधान में इस गगनचुम्बी मंदिर का निर्माण 1199 में करवाया और इसकी प्रतिष्ठा वादिदेवसूरि के पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि ने 1204 में करवाई। इस तीर्थ की महिमा का वर्णन करते हुए जिनप्रभसूरि तो यहाँ तक लिखते हैं: "इस महातीर्थभूत पार्श्वनाथ के दर्शन से कलिकुण्ड, कुर्कुटेश्वर, श्रीपर्वत, शंखेश्वर, सेरीसा, मथुरा, वाराणसी; अहिच्छता, स्तंभ, अजाहर, प्रवरनगर, देवपत्तन, करहेड़ा, नागदा, श्रीपुर, सामिणि चारूप, ढिंपुरी, उज्जैन, शुद्धदन्ती, हरिकंखी, लिम्बोडक आदि स्थानों में विद्यमान पार्श्वनाथ प्रतिमाओं का यात्रा करने का फल होता है।" १५वीं शती में हेमराज सुराणा ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। आज भी यह मंदिर दर्शनीय है और चमत्कारपूर्ण है। 11. बिजोलिया पार्श्वनाथ - यह भीलवाड़ा जिले की बूंदी की सीमा पर स्थित है। यहाँ चट्टान पर खुदा हुआ "उत्तम शिखर पुराण" एवं वि० सं० 1226 का चौहानकालीन महत्वपूर्ण लेख है। मंदिर भग्न हो गया है, केवल शिखर का भाग ही अवशिष्ट है। यह मंदिर दिगम्बर परम्परा का है। चौहानकालीन 1226 के लेख में 92 पद्य एवं कुछ गद्य भाग है। लेख के ५६वें पद्य में लिखा है - श्रेष्ठि लोलाक की पत्नी ललिता को स्वप्न में यहाँ मंदिर बनवाने का देव-निर्देश मिला था। इस लेख में यह उल्लेख भी मिलता है कि यहाँ कमठ ने उपसर्ग किया था। उत्तम शिखर पुराण दूसरी चट्टान पर खुदा हुआ है। इसमें 294 श्लोक हैं। इसके तीसरे सर्ग में कमठ के उपसर्ग का विस्तृत वर्णन भी मिलता है। 12. रतनपुर पार्श्वनाथ - रतनपुर मारवाड़ के पार्श्वनाथ मंदिर का तीर्थरूप में उल्लेख मिलता है। वि० सं० 1209, 1333, 1343, 1346 के लेखों से इसकी प्राचीनता और प्रसिद्धि स्पष्ट है, किन्तु आज यह तीर्थ महत्व-शून्य है। 13. रावण पार्श्वनाथ - अलवर से 5 कि० मी० दूर जंगल में रावण पार्श्वनाथ मंदिर जीर्ण दशा में प्राप्त है। परम्परागत श्रुति के अनुसार यह मूर्ति रावण-मन्दोदरी द्वारा निर्मित थी। सं० 1645 में श्रेष्ठि हीरानन्द ने रावण पार्श्वनाथ का भव्य मंदिर बनवाकर खरतरगच्छीय आद्यपक्षीय शाखा के जिनचन्द्रसूरि के आदेश से वाचक रंग कलश से प्रतिष्ठा करवाई थी। 1449 की कल्पसूत्र की प्रशस्ति तथा अनेक तीर्थमालाओं आदि में भी रावण तीर्थ का उल्लेख मिलता है। 14. लौद्रवा पार्श्वनाथ - जैसलमेर से 15 किलोमीटर पर यह तीर्थ है। सहजकीर्ति निर्मित शतदलपद्म गर्भित चित्रकाव्य के अनुसार श्रीधर और राझधर ने चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया। श्रेष्ठि खीमसा ने मंदिर भग्न होने पर नूतन मंदिर बनवाया। इसके भी जीर्ण-शीर्ण होने पर जैसलमेर निवासी लेख संग्रह 321
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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