________________ भणसाली गोत्रीय थाहरू शाह ने प्राचीन मंदिर के नींव पर ही पंचानुत्तर विमान की आकृति पर नव्य एवं भव्य मंदिर बनवाकर चिन्तामणि पार्श्वनाथ की श्यामवर्णी प्रतिमा विराजमान की। इसकी प्रतिष्ठा खरतरगच्छीय जिनराजसूरि ने सं० 1675, मिगसर सुदि 12, गुरुवार को की थी। मंदिर के दायीं ओर समवसरण पर अष्टापद और उस पर कल्पवृक्ष की मनोहर रचना भी है। मंदिर शिखरबद्ध है और शिल्पकला की दृष्टि से अनूठा है। 15. वरकाणा पार्श्वनाथ - राणी स्टेशन से 3 कि०मी० पर वरकाणा गाँव है। प्राचीन नाम 'वरकनकपुर' मिलता है। गोडवाड की प्रसिद्ध पंचतीर्थी में इस तीर्थ का प्रमुख स्थान है। कई बार इसका जीर्णोद्धार होने से प्राचीनता नष्ट हो गई है। शिवराजगणि ने आनन्दसन्दर ग्रन्थ (र० सं० 1559) के प्रारंभ में ही "वरकाणा पार्श्व प्रसन्नो भव" लिखकर इस तीर्थ की महिमा गाई है। महाराणा जगतसिंह ने सं० 1687 के लेख में मेले के लिये जफात में छूट का उल्लेख है। अन्य तीर्थ - इसी प्रकार तिंवरी पार्श्वनाथ, पोसलिया पार्श्वनाथ सोजत के पास मुंडेवा पार्श्वनाथ, नाडलाई में सोमटिया पार्श्वनाथ, सुजानगढ़ में जगवल्लभ पार्श्वनाथ के मंदिर भी दर्शनीय हैं। गोंडी पार्श्वनाथ के नाम से बीकानेर, आहोर, धानेरा, नाड़लाई, सोजत के मंदिर प्रसिद्ध और दर्शनीय हैं। वस्तुतः देखा जाए तो यह राजस्थान प्रदेश अतिशय/चमत्कारी तीर्थ-स्थलों का ही प्रदेश है। इस लघु निबन्ध में पार्श्वनाथ के प्रसिद्ध एवं मुख्य-मुख्य तीर्थ-स्थलों का उल्लेख मात्र किया गया है / ऐतिहासिक विश्लेषण प्राचीनत्व और विशिष्टताओं का लेखा-जोखा नहीं है। अनुसन्धान करने पर इस प्रदेश में अन्य अनेक प्राचीन तीर्थ क्षेत्रों का परिचय भी प्राप्त किया जा सकता है। [Arhat Parva and Dharanendra Nexus] 322 लेख संग्रह