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________________ 6. नवलखा पार्श्वनाथ - पाली मारवाड़ में नवलखा दरवाजे के पास बावन जिनालय वाला विशाल नवलखा पार्श्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। इस स्थान का प्राचीन नाम पल्लिका, पल्ली था। सं० 1124, 1178, 1201 के प्राप्त लेखानुसार मूलतः यह महावीर स्वामी का मंदिर था। सं० 1686 के लेखानुसार नवलखा मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था और पुनर्प्रतिष्ठा के समय पार्श्वनाथ की सपरिकर मूर्ति स्थापित की गई थी। 7. नाकोड़ा पार्श्वनाथ - जोधपुर से बाड़मेर रेलवे के मध्य में बालोतरा स्टेशन से 10 कि०मी० दूरी पर मेवानगर ग्राम में यह तीर्थ है। वस्तुतः ग्राम का नाम वीरपुर या नगर था किन्तु महेवा और नगर का मिश्रण होकर यह स्थान अभी मेवानगर कहलाता है। नाकोड़ा ग्राम के तालाब से प्रकट इस पार्श्वनाथ प्रतिमा की इस स्थान पर स्थापना/प्रतिष्ठा अनुमानतः वि० सं० 1512 में खरतरगच्छीय कीर्तिरत्नसूरि ने की थी। संस्थापक कीर्तिरत्नसूरि की मूर्ति भी (1536 में प्रतिष्ठित) मूल मण्डप के बाहर बायीं ओर के आले में विराजमान है। नाकोड़ा में प्रकटित होने के कारण ही नाकोड़ा पार्श्वनाथ के नाम से इसकी प्रसिद्धि हुई है। यहाँ के अधिष्ठायक भैरव भी नाकोड़ा भैरव के नाम से सारे भारत में विख्यात हैं। वर्तमान में श्रद्धालु यात्री भी 400-500 के लगभग प्रतिदिन आते हैं। राजस्थान के समस्त तीर्थों की तुलना में आय भी इसकी सर्वाधिक है। मन्दिर भी विशाल और रमणीय है। व्यवस्था भी सुन्दर है। 8. नागफणा पार्श्वनाथ - यह मंदिर उदयपुर में है। साराभाई म० नवाब की पुस्तक 'पुरिसादाणी श्री पार्श्वनाथजी' के अनुसार महाराणा प्रताप ने धरणेन्द्र-पद्मावती सहित पार्श्वनाथ की आराधना से ही पिछले युद्धों में विजय प्राप्त कर इस मंदिर का निर्माण करवाया था, जो नागफणा पार्श्वनाथ के नाम से आज भी प्रभावशाली माना जाता है। 9. नागहृद नवखण्डा पार्श्वनाथ - उदयपुर से 22 कि०मी० पर नागंदा गाँव है। यहाँ वर्तमान में सं० 1494 में खरतरगच्छीय जिनसागरसूरि प्रतिष्ठित शान्तिनाथ का मंदिर है। किन्तु मुनिसुन्दरसूरि रचित नागहृद तीर्थ स्तोत्र, जिनप्रभसूरि के फलविधि पार्श्वनाथ तीर्थकल्प में नागहृदय पार्श्वनाथ के उल्लेख प्राप्त हैं। राजगच्छीय हरिकलश रचित (१५वीं शती) मेदपाट देश तीर्थमाला-स्तव पद्य 3 में नवखण्डा पार्श्वनाथ का उल्लेख है। यहाँ पार्श्वनाथ का जीर्ण मंदिर भी है। मंदिरस्थ मूर्ति के एक प्रभासण के नीचे 1192 का लेख प्राप्त है। आलोक पार्श्वनाथ - नागदा में ही एकलिंगजी के मंदिर के पास ही दिगम्बर परम्परा का आलोक पार्श्वनाथ का मंदिर था जिसे समुद्रसूरि ने श्वेताम्बर तीर्थ के रूप में परिवर्तित कर दिया था। १७वीं शताब्दी से अनेकों श्वे० शिलालेख प्राप्त हैं। आलोक पार्श्वनाथ मंदिर का उल्लेख बिजोलिया के 1236 वाले शिलालेख में भी प्राप्त है। 10. फलवर्द्धि पार्श्वनाथ - मेड़ता रोड जंक्शन स्टेशन से एक फलांग की दूरी पर फलौदी नामक गाँव है जो फलौदी पार्श्वनाथ या मेड़ता फलौदी के नाम से मशहूर है। राजस्थान के प्राचीन तीर्थस्थानों में इसकी गणना की जाती है। जिनप्रभसूरि रचित फलवर्द्धि पार्श्वनाथकल्प के अनुसार मालवंशीय धांधल और ओसवालवंशीय शिवकर ने भूमि से प्राप्त सप्तफला पार्श्वनाथ की प्रतिमा नवीन विशाल गगनस्पर्शी मन्दिर बनवाकर स्थापित की और इसकी प्रतिष्ठा वि० सं० 1181 में राजगच्छ (धर्मघोषगच्छ) 320 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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