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________________ 1. उस समय मेड़ता क्षेत्र पर राव दूदाजी का ही साम्राज्य था। इस बात को जोधपुर के समस्त इतिहासकार स्वीकार करते हैं। "दूदा-वि० सं० 1546 में इसने मेड़ते में अपना ठिकाना बाँधा और इसी से इसके वंशज मेड़तिया कहलाये।" ओझाजी, पृ० 253 2. सिरियाखानो रणे निर्जितः' सिरियाखान या सेरखान जो उस समय मांडू के शाह की ओर से अजमेर का सूबेदार था, उसको पराजित किया। इस संबंध में श्री ओझाजी अपने 'जोधपुर राज्य का इतिहास' पृ० 261 में लिखते हैं: "राव सातल का छोटा भाई वरसिंह मेड़ता में रहता था। उसने वहाँ से चढ़कर सांभर को लूटा / इस पर अजमेर का सूबेदार मल्लूखां, सिरिया खां, और मीर घडूला को साथ ले ससैन्य मेड़ते पर चढ़ाई। x x x वरसिंह, दूदा, सूजा, वरजांग (भीमोत) आदि के साथ ससैन्य कोसाणे पहुँचकर उसने रात्रि के समय मुसलमानी सेना पर आक्रमण कर दिया। दूदा ने सिरिया खां की ओर बढ़कर उसका हाथी छीन लिया। x x x इस लड़ाई में सातल भी बहुत घायल हो गया था, जिससे वह भी . जीवित न बच सका। इस लड़ाई का (श्रावणादि) वि० सं० 1548 (चैत्रादि) 1549 चैत्र सुदि 3 को होना माना जाता है। ___ठा० गोपालसिंह मेड़तिया लिखित 'जयमलवंश प्रकाश' पृ० 63 में मल्लूखां को ही सिरिया खां लिखा है जो अधिक संगत प्रतीत होता है। बांकीदास की ऐतिहासिक बातें' संख्या 623 में भी लिखा है कि इसने देश में बिगाड़ करने वाले अजमेर के सूबेदार सिरियाँ खां को मारा। . स्पष्ट है कि राव दूदा इस युद्ध में प्रमुख योद्धा और विजेता के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं। 3. मालवपतिर्दन्ताबलानां कुलं' से स्पष्ट है कि यह सेरखान मालवा के बादशाह ,का ही विशिष्ट व्यक्ति था। राव दूदा ने मालवपति के हाथियों के दल को सिंह के समान नष्ट कर दिया था। ___ इस युद्धकाल के 7 वर्ष पश्चात् का उल्लेख होने से यह माना जा सकता है कि इस युद्ध के नेता और विजय के अधिकारी प्रधान रूप से राव दूदा ही हों और पिछले इतिहासकारों ने राव सातलजी को गद्दीपति होने के कारण प्रमुखता दी हो। 'नृपनेता दुर्जनशल्यो नृपो जयति' से स्पष्ट है कि मेड़ता के शासक होने के कारण यहाँ इन्हें नृप शब्द से संबोधित किया गया हो। जयमलवंशप्रकाश के अनुसार राव दूदाजी, राव जोधाजी के चतुर्थ पुत्र हैं। इनका जन्म सं० 1497 का है और मरण संवत् 1571 है। इन्हीं की पौत्री भारतप्रसिद्ध भक्तिमती मीरा हुई है। . ___ अतः राव दूदा को ही दुर्जनशल्य स्वीकार करना उपयुक्त एवं समीचीन होगा। पेरोजखान प्रशस्ति पद्य 27 में 'पेरोजखाना नृपतेः प्रसादं' पेरोजखान नृपति से प्रसाद पाकर, उल्लेख है। यह पेरोजखान कौन है? कहाँ का शासक या सूबेदार है? संघवी हेमराज को इसका प्रसाद प्राप्त करने की आवश्यकता क्यों हुई? मेड़ता से इसका क्या सम्बन्ध है? आदि प्रश्न विचारणीय हैं। इस विषय पर इतिहास के विद्वान् ही प्रकाश डाल सकते हैं। 312 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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