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________________ 4. सं० 1573 में शिवराज के पौत्र चाहड ने अपने समस्त परिवार के साथ इस मन्दिर की प्रतिष्ठा पद्मानन्दसूरि के पट्टधर श्री नन्दिवर्द्धनसूरि के कर-कमलों से करवाई। सुसाणी देवी को प्रतिबोध देने वाले वही धर्म सूरि हैं जिन्होंने कि मोल्लण को जैन धर्म में दीक्षित किया था और फलवर्द्धि पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा करवाई थी। उपर्युक्त फलौदी प्रशस्ति की अपेक्षा इस लेख में हेमराज के वंशजों में निम्नलिखित वैशिष्ट्य है: हेमराज के पुत्र पुंजराज की दो पत्नियाँ थीं- 1. प्रतापदे और 2. पाटमदे। प्रतापदे का पुत्र चाहड है और पाटमदे के 3 पुत्र हैं- 1. रणधीर 2. नाथू और 3. देवा। रणधीर का पुत्र देवीदास है। सहसमल का पुत्र मांडण है। रणमल के दो पुत्र हैं- 1. खेता और 2. खीमा। नल्हा का पौत्र सीहमल का पुत्र पीथा है तथा नरदेव का पुत्र मोकल है। फलवर्द्धिका देवी प्रशस्ति में हेमराज के चतुर्थ पुत्र देवा का उल्लेख नहीं है और देवीदास के लिये 'प्रसिद्भोऽधतदीय पुत्रः' लिखा है, जिससे स्पष्ट नहीं होता कि देवीदास चाहड का पुत्र है या रणधीर का? जबकि इस लेख में देवीदास को स्पष्ट रूप से रणधीर का पुत्र लिखा है। तथा नरदेव का पुत्र देवदत्त लिखा है, जबकि इस लेख में देवदत्त के स्थान पर मोकल है। इस सुसाणी देवी के लेख के आधार से हेमराज का वंश-वृक्ष इस प्रकार बनता है: संघवी हेमराज काजा नाल्हा नरदेव जराज / (कउतिगदे) मोकल सीहमल्ल (चाप श्री) (चाप श्री) 1 प्रतापदे 2 पाटमदे साहसमल रणमल पीथा खेता चाहड रणधीर नाथू देवा माडण खीमा देवीदास राठौड़ दुर्जनशल्य और सेरखान पर विजय राष्ट्रकूट (राठौड़) दुर्जनशल्य का परिचय देते हुए प्रशस्ति के पद्य 19 से 23 तक में लिखा है: राष्ट्रकूट वंश में जैत्रचन्द्र नामक राजा हुआ। इसकी सन्ताने 'कर्मध्वज' कमधज राठौड़ कहलाई। इसी परंपरा में भूपति सलखा हुए। इनके पुत्र वीरमदेव हुए। वीरमदेव के पुत्र चुण्डराज (चूंडाजी) हुए और इनके पुत्र रिणमल हुए। रिणमल के पुत्र 'योधभूपति' (जोधाजी) हुए और जोधाजी के पुत्र 1. नाहर जैन लेख संग्रह भा०२ लेखांक 1620 / लेख संग्रह 310
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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