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________________ पृथ्वीराज चौहान के पतन के पश्चात् यह शाकम्भरी का अधिपति साल्हणराज कौन है और वामदेव ने साल्हणराज के अतिरिक्त कौन से दो राजाओं का मन्त्रिपद स्वीकार किया था? इस सम्बन्ध में इतिहासविद् ही इस प्रश्न पर प्रकाश डाल सकते हैं। हेमराज के पितामह गोशल ने विधिवत् शत्रुजय और गिरनारतीर्थ की यात्रा की थी और पिताश्री शिवराज संघपति (संघाधिप) था, भूपति द्वारा सत्कृत था। शिवराज ने अजमेर में रुपयों की लाहणी की थी तथा सं० 1495 और 1496 में अजमेर में दुष्काल पड़ने पर दीन-दुःखियों के लिये दानशाला (सत्र) खोली थी। . संघपति हेमराज के सम्बन्ध में प्रशस्ति में लिखा है 'इसने पहले मालव देश में जैन धर्म की उन्नति की और मालव, इन्द्रपथ (दिल्ली) तथा मेवात देश में मुद्रा की लाहणी की थी। इसी ने पेरोजखान से प्रसाद और मान प्राप्त करके तथा राठौड़ाधिपति महाराजा दुर्जनशल्य से आज्ञा प्राप्त कर, विज्ञ सूत्रधारों को बुलाकर चैत्योद्धार (चैत्योद्धारणाय) का कार्य प्रारम्भ करवाया। उद्धार ही क्या, अपितु उत्तुङ्ग प्रासाद का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर पुत्र-पौत्रादि परिवार के साथ बड़े महोत्सवपूर्वक सं० 1555, चैत्र शुक्ला 11 गुरुवार, पुष्य नक्षत्र में अपने परम्परागत गुरु धर्मघोषगच्छ के आचार्य नन्दीवर्द्धनसूरि के करकमलों से प्रतिष्ठा करवाई। संघवी हेमराज ने न केवल फलवर्द्धिदेवी के मंदिर का ही जीर्णोद्धार करवाया अपितु पार्श्वनाथ मंदिर का भी सं० 1552 में विशाल द्रव्यराशि खर्च करके जीर्णोद्धार करवाया था। इस प्रसंग का उल्लेख खेमराज रचित पार्श्वनाथ रास (र. सं. 1552) में इस प्रकार प्राप्त है: सूरवंशहि सदा दीपतओ, सिंघपति शिवराज तणउ हेमराज। पनर बावन्नई ऊधर्यऊ, करई अनोपम अविहड काज॥१४॥ पंच करोडी दीपतउ मंडप, पंच तोरण सुविशाल। कोरणी अतही सोहामणी, पुतली नाटारंभ विशाल॥ 15 // सिखर सोहइ रलियामणउ, अठोतर सउ थंभ थिर थोभ। * दंड कलश धज लह लहइ, नलणि विमाण जांणि करि सोभ॥१६॥ सनमुखइ गजरतनइ चढिओ, सेव करइ संप्रति हेमराज। पास जिणेसरनी सदा आपणा साए समरथ काज॥ 17 // "सनमुखइ गजरतनइ चढिओं" के अनुसार आज भी मंदिर के बाहर चौंतरा अवशिष्ट है। परंपरा के अनुसार कहा जाता है कि यहाँ हाथी के हौदे पर संघवी शिवराज की प्रतिमा दर्शन मुद्रा में थी। एतदतिरिक्त संघपति हेमराज ने और उसके वंशजों ने भी अनेक प्रतिमाओं का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठायें करवाई थीं। उदाहरणार्थ 3 धातु पंचतीर्थीओं के लेख उद्धृत हैं : 1. देखें, लेखक कृत प्रतिष्ठा लेख संग्रह लेखांक 904, 958, 959 लेख संग्रह 307
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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