________________ सं० हेमराजेन अयं फलवर्द्धिदेव्याः प्रासादः कारापितः, स च प्रतिष्ठितः श्रीधर्मघोषगच्छे भट्टारक, श्री पद्मानन्दसूरि तत्पट्टे श्रीनन्दिवर्द्धनसूरिभिः॥ - संवत् 1724 वर्षे फागुणवदि 4 दिने लिखितम्। इस प्रशस्ति का दो पंक्तियों में सारांश यह है कि वि० सं० 1555, चैत्र शुक्ला एकादशी को राठोड़ दुर्जनशल्य के राज्य में पेरोजखान से प्रसाद एवं मान प्राप्त करके सुराणा गोत्रीय हेमराज ने अपने परिवार के साथ फलवर्द्धिका देवी के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और इसकी प्रतिष्ठा धर्मघोषगच्छीय नन्दिवर्द्धनसूरि से करवाई। इस प्रशस्ति में अनेकों विचारणीय ऐतिहासिक तथ्यों का संकेत है१. सुराणा गोत्र की उत्पत्ति 2. सुराणा गोत्र के पूर्वजों का पृथ्वीराज चौहान से सम्बन्ध 3. हेमराज की परम्परा और उसके विशेष कृत्य 4. राठोड़ दुर्जनशल्य और उसकी सेरखान पर विजय 5. पेरोजखान सूबेदार 6. धर्मघोषगच्छीय नन्दीवर्द्धनसूरि और उनकी गुरु-परम्परा अब क्रमशः इन संकेतों पर विचार प्रस्तुत हैं:१. सुराणा गोत्र की उत्पत्ति डाहल देश का अधिपति परमारवंशीय राजा मधुदेव हुआ। उसका यशस्वी पुत्र सूर हुआ। इस सूर के वंश में सूर का पुत्र श्यामलेन्द्र और मोल्लण हुआ। इस मोल्लण ने धर्मघोषसूरि के उपदेश से जैन धर्म स्वीकार किया और श्रावक के व्रत स्वीकार किये। मोल्लण की वंश-परम्परा में ही हेमराज हुआ जिसके लिये प्रशस्ति पद्य 17 में 'सारसौराणवंश' कहा है। इससे स्पष्ट है कि सूर के वंशज 'सौरवंशी' कहलाये और जैन धर्म स्वीकार के पश्चात् इसे सौराण गोत्र की संज्ञा प्राप्त हुई। वही आगे चलकर सुराणा कहलाये। आज भी सुराणा गोत्री जैन धर्मी हैं और कई स्थलों पर धर्मघोषगच्छ के अनुयायी हैं। 2. सुराणा गोत्र के पूर्वजों का पृथ्वीराज चौहान से सम्बन्ध __पाँचवें पद्य में लिखा है कि पृथ्वीराज की आज्ञा से गर्जना (गजनी) से वार्षिक दण्ड (कर) लेने के लिये डाहलदेशीय परमारवंशी सूर वहाँ गया और अकेले ने 74 सुभटों को धराशायी किया। यह 74 का अङ्क आज भी अक्षय रूप होने से लेख वस्तुओं में लिखा जाता है। इसी के नाम से पृथ्वी में सौरवंश प्रसिद्ध हुआ। इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान् डा० दशरथ शर्मा के मतानुसार डाहल देश चेदिदेश ही है। चेदिदेश में उस समय परमारों का ही आधिपत्य था। अन्तिम हिन्दू सम्राट् पृथ्वीराज चौहान की एक रानी चेदिदेशीय परमार थी। इसलिये संभव है इस सम्बन्ध के कारण परमारवंशी अनेकों सामन्त आदि पृथ्वीराज के साथ शाकम्भरी आ गए हों और पृथ्वीराज के राज्य में उच्चाधिकारों पर नियुक्त हों। 304 लेख संग्रह