________________ फलौदी माता के मन्दिर के जीर्णोद्धार का एक महत्त्वपूर्ण शिलालेख मेड़ता रोड जंक्शन राजस्थान प्रदेश के जोधपुर डिवीजन में स्थित है। जयपुर, जोधपुर और बीकानेर जाने के लिए यह मध्य केन्द्र है। मेड़ता नगर के मार्ग में स्थित होने के कारण यह स्थान (स्टेशन) मेड़ता रोड के नाम से प्रसिद्ध है, किन्तु इसका प्राचीन नाम फलवर्द्धिका (फलौदी) है यहाँ माताजी का प्रसिद्ध मंदिर होने से फलवर्द्धिका देवी या फलौदी माता के नाम से एवं जैनों का विख्यात और प्रसिद्ध पार्श्वनाथ जैन मंदिर होने से फलवर्द्धिका पार्श्वनाथ या फलौदी पारसनाथ के नाम से तीर्थ के रूप में आज भी प्रख्यात है। . . चौदहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध जैनाचार्य मुहम्मद तुगलक प्रतिबोधक जिनप्रभसूरि ने अपने विविध तीर्थ कल्पनान्तर्गत फलवर्द्धि पार्श्वनाथ कल्प (पृ० 105) में इस स्थान के सम्बन्ध में लिखा है: "अस्थि सवालक्खदेसे मेडत्तयनगर समीवठिओ वीरभवणाइनाणाविटदेवालयाभिरामो फलवद्धी नाम गामो। तत्थ फलवद्धिनामधिज्जाए देवीए भवणमुत्तुंगसिहरं चिट्ठइ। सो अ रिद्धि समिद्धोवि कालक्कमेण उव्वसपाओ संजाओ।" ' अर्थात् सपादलक्ष देश में मेड़ता नगरी के समीप स्थित महावीर' चैत्य आदि देवालयों से मंडित फलवर्सी नामक रमणीय ग्राम है। यहाँ पर फलवर्नी नामक देवी का ऊँचे शिखर वाला मंदिर विद्यमान है। यह ऋद्धि से समृद्ध होने पर भी कालक्रम से ऊजड़ हो गया है। - वर्तमान समय में इस ग्राम में पार्श्वनाथजी का विशाल और प्रसिद्ध जैन मंदिर विद्यमान है जिसकी प्रतिष्ठा वि. सं. 1181 में राजगच्छीय धर्मघोषसूरि ने की थी। इसके पश्चात् तो इस तीर्थ के यात्रा संघों एवं * प्रतिष्ठाओं आदि के विस्तृत और महत्वपूर्ण वर्णन प्राप्त होते हैं, इसके लिये खरतर गच्छालंकार युगप्रधानाचार्य गुर्वावली द्रष्टव्य है। आज भी यहाँ आश्विन कृष्णा 10 और पौष कृष्णा 10 को मेला भरा रहता है। ___दूसरा वर्तमान में फलौदी माता का तो नहीं किन्तु ब्रह्माणी माता के नाम से एक सामान्य मंदिर है। इस मंदिर के समक्ष एक उत्तुंग और विशाल तोरण विद्यमान है जो कि इसकी प्राचीनता को ध्वनित करता है। इस मंदिर के गर्भगृह में एक स्तम्भ पर ९वीं शताब्दी का कुटिल लिपि का लेख अंकित है जिसमें फलवर्द्धिका देवी का स्पष्ट उल्लेख है। इस लेख पर श्री भंवरलालजी नाहटा ने एक शोधपूर्ण लेख लिखा था जो नागरी प्रचारिणी पत्रिका के वर्ष 43, भाग 19, अङ्क 3 में 'फलौदी की कुटिल लिपि' के नाम से प्रकाशित हुआ था। उक्त लेख महत्वपूर्ण होने के कारण उद्धृत किया जा रहा है: 7 ओं नम श्रीफलवर्द्धिका दे वि। श्रीपुष्करणांक वारी वासी 1. महावीर चैत्य, पार्श्वनाथ चैत्य से प्राचीन हो किन्तु वर्तमान में महावीर चैत्य नहीं है। लेख संग्रह 299