________________ 7. वि.सं. 1263, फाल्गुन बदी 4 को लवणखेट में जिनपतिसूरि ने महं कुलधरकारित महावीर प्रतिमा - की स्थापना की और नरचन्द्र, रामचन्द्र, पूर्णचन्द्र एवं विवेकश्री, मंगलमति, कल्याणश्री, जिनश्री आदि . साधु-साध्वियों को दीक्षा दी तथा धर्मदेवी को प्रवर्तिनी पद दिया। इस अवसर पर आभुल आदि ___ बागडीय श्रावक समुदाय आचार्य जिनपतिसूरि को वंदन करने हेतु लवणखेड़ आया। 8. वि.सं. 1265 में लवणखेड़ में ही मुनिचन्द्र, मानचन्द्र और सुन्दरमति, आसमति नामक चार स्त्रीपुरुषों को दीक्षित किया। निष्कर्ष यह है कि वि.सं. 1243 से 1265 के मध्य आचार्य जिनपतिसूरि जो युगप्रधान दादा जिनदत्तसूरि के प्रशिष्य एवं मणिधारी जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर शिष्य थे, अनेकों बार लवणखेड में आये। लवणखेटक के राणक श्री केल्हण आचार्य को विशिष्ट सम्मान देते थे। आचार्य ने यहाँ कई बार मुमुक्षु एवं मुमुक्षिणीयों को दीक्षित किया, अनेकों को पद प्रदान किया। विशाल शान्तिनाथ विधिचैत्य का निर्माण हुआ और दो बार प्रतिष्ठायें करवाईं। इससे स्पष्ट है कि वि.सं. 1265 तक लवणखेटक प्रसिद्ध वैभवपूर्ण नगर था, व्यापार केन्द्र था, और प्रचुर परिमाण में धनाढ्य श्रावक यहाँ निवास करते थे। आचार्यों एवं मुनियों के यहाँ चातुर्मास होते रहते थे। जैसे यह खरतरगच्छ का प्रमुख गढ़ था वैसे ही नागेन्द्र गच्छ, भावदेवाचार्य गच्छों आदि का प्रभाव भी यहाँ प्रचुर था और वे यहाँ विचरण करते थे। - आचार्य जिनपतिसूरि ने 1258 में शान्तिनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा के समय जिस वीरप्रभ को दीक्षित किया था, वे ही परवर्ती समय में जिनपतिसूरि 1277 में स्वर्गवास हो जाने पर वि.सं. 1278 में जिनेश्वरसूरि के नाम से आचार्य बने। इस दीक्षा और शान्तिनाथ मंदिर प्रतिष्ठा के उल्लेख लक्ष्मीतिलकोपाध्याय रचित शान्तिनाथ देवरस गाथा 45-46, सोमवर्ती गणि रचित जिनेश्वरसूरि संयमश्री विवाह वर्णन रास गाथा 20 से 24 एवं जिनेश्वरसूरि सप्ततिका गाथा 23 आदि में प्राप्त हैं। 9. वि.सं. 1383 में दादा जिनकुशलसूरिजी बाड़मेर से विहार करते हुए लवणखेटक आये और स्वकीय पूर्वज वाहित्रिक सेठ उद्धरण निर्मापित शिखरबद्ध शान्तिनाथ मंदिर में भगवान के दर्शन किये। इससे स्पष्ट है कि 1258 में निर्मित शांतिनाथ मंदिर 1383 तक विद्यमान था। इसके पश्चात् ही ... कभी भी इस मंदिर का ध्वंस हुआ होगा। आज तो इसके अवशेष भी कहीं प्राप्त नहीं हैं। 10. वि. सं. 1191 में लिखित ताड़पत्रीय ग्रन्थ पुष्पवती कथा आदि प्रकरण संग्रह की लेखन पुष्पिका , में लिखा है:- अधुना खेटका धार मण्डल राज. श्री शोभनदेव की प्रतिपत्रि में खेटक स्थान में आये हुए - निवासी पं. वामुक ने देवसिरि गणिनि के लिये पुष्पवती कथा लिखी। . 11. बारहवीं शती में लिखित ताड़पत्रीय ग्रन्थ की अपूर्ण लेख पुष्पिका जो खेटपुर निवासी हुंबड़ ज्ञातीय श्रेष्टि आम्बदेव के सन्तानियों ने लिखवाई थी:-३ श्रीमत्खेटपुरोद्भवोच्चजनताधारो मनोनन्दन्, ख्यातः प्राशुगुणेन धर्मवसतिः श्रीहुम्बडानां वरः॥9॥ 1. खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली, पृ.44 2. मुनि जिनविजय : जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह, पृ. 103 ,3. वही, पृ. 63 लेख संग्रह 293