SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वस्तुतः देखा जाए तो गोहिल राजपूतों के पतन के पश्चात् एवं जलालुद्दीन खिलजी के आक्रमण के अनन्तर तो यह समृद्धिपूर्ण लवण खेटक समृद्धिहीन होता गया और इसकी विस्तृत सीमायें खण्डखण्ड होती गईं। इसी का परिणाम है कि उस समय का वह वैभवशाली नगर वर्तमान में एक छोटा सा ग्राम दिखाई देता है। श्री रणछोडरायजी के मंदिर की प्रसिद्धि एवं मान्यता न होती तो शायद इस नगर का आज नामोनिशान भी न होता। इस सम्भावना का प्रमुख कारण यह है कि लवणखेटक/खेटक के संबंध में जो मूर्तिलेख या ग्रन्थ लेखन पुष्पिकायें प्राप्त होती हैं वे सभी राठोड़ सलखाजी के पूर्व ही प्राप्त होती हैं। और जो प्राप्त होती हैं वे सभी इस नगर की जाहोललाली का वर्णन करती हैं। प्राप्त प्रमाण निम्न हैं:1. वि.सं. 1243 में आचार्य जिनपतिसूरि ने लवणखेटक में चातुर्मास किया था। 2. वि.सं. 1245 में आचार्य जिनपतिसूरि संघ के साथ यहीं आये और यहाँ पूर्णदेवगणि, मानचन्द्रगणि एवं गुणभद्रगणि को वाचनाचार्य पद से अलंकृत किया। 3. वि.सं. 1248 में लवणखेटक में जिनहित को उपाध्याय पद प्रदान किया था। 4. वि.सं. 1251 में जिनपतिसूरिजी ने राणा श्री केल्हण का विशेष आग्रह होने के कारण पुनः लवणखेटक ____ जाकर दक्षिणावर्त आरात्रिकावसारणत्व बड़ी धूमधाम से मनाया। 5. वि.सं. 1256, चैत्र बदी 5 को लवणखेड़ में नेमीचन्द्र, देवचन्द्र, धर्मकीर्ति और देवेन्द्र को दीक्षित किया था। 6. वि.सं. 1257 में लवणखेट में शांतिनाथ के विशाल मंदिर की प्रतिष्ठा का आयोजन किया गया था, किन्तु प्रशस्त शकुनों के अभाव में नहीं हो सकी। इसलिये यही प्रतिष्ठा जिनपतिसूरि ने वि. सं. 1258, चैत्र बदी 5 को शांतिनाथ विधि चैत्य में शांतिनाथजी की प्रतिमा व शिखर की प्रतिष्ठा करवाई। और वहीं चैत्र बदी 2 को वीरप्रभ और देवकीर्ति को दीक्षित किया। 14वीं शती में ताड़पत्रीय आवश्यक लघुवृत्ति की लेखन प्रशस्ति के अनुसार लवणखेटीय शान्तिनाथ मंदिर का निर्माण श्रेष्ठि उद्धरण ने करवाया थाः य इह लवणखेटे मंदिरं शान्तिनेतु र्व्यरचयदतिरम्यं स्वधुनीस्पर्धिकेतु।। स्मृतिपथगमिता ऽऽ नन्दादिपुंस्कस्य तस्योद्वरणणसम भिधस्या ऽऽ नन्दना नन्दना या // 11 // " 1. खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली, पृ. 34 2. वही, पृ. 44, 3. वही पृ. 44, 4. वही पृ. 44, 5. वही पृ.44, 6. वही पृ.44 7. जैसलमेर जैन ताडपत्रीय ग्रन्थ भंडार सूचीपत्र, प.37, क्रमांक 114 292 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy