________________ खेड़ से सम्बन्धित प्राचीन जैन लेख एवं उल्लेख खेड़ एक प्राचीन नगर रहा है, जो वर्तमान समय में जोधपुर और बाड़मेर के बीच बालोतरा स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम की ओर एक सामान्य ग्राम के रूप में अवस्थित है। रेलवे स्टेशन भी है। ग्राम में कुछ झोपड़ियाँ हैं जिनमें अन्त्यज जाति के लोग रहते हैं। वर्तमान में दसवीं और बारहवीं शती के मध्य निर्मित श्री रणछोड़रायजी का प्राचीन मंदिर है। इसी मंदिर के अन्तर्गत कई मंदिर हैं / गर्भगृह में श्वेत संगमरमर की रणछोड़राय जी की 4'/, फुट की वि. सं. 1232 की भव्य एवं विशाल प्रतिमा विद्यमान है। आसपास के ग्रामों की रणछोडरायजी के प्रति अत्यन्त आस्था और मान्यता है / भाद्रपद शुक्ला अष्टमी को मेला भी भरता है, इस अवसर पर हजारों दर्शनार्थी भी आते हैं। इस ग्राम के चारों तरफ यत्र-तत्र प्राचीन अवशेष आज भी प्राप्त होते रहते हैं। . प्राचीनता :- इसका प्राचीन नाम लवण खेटक या खेटक प्राप्त होता है। वहाँ की एवं आसपास की भूमि क्षार/लवण युक्त होने से यह लवण खेटक कहा जाता रहा है। लवण खेटक का संक्षिप्त रूप खेटक का भाषा में खेड़ ही प्रसिद्ध रहा। प्राचीन समय में लवण खेटक एक विशाल नगर था। श्री रामकर्ण गुप्त एडवोकेट के 'खेड में प्राचीन मंदिर' शीर्षक लेख के अनुसार इस नगर का विस्तार लगभग 3 कोस अर्थात् 6 मील (9 किलोमीटर) में था व इस स्थल के चारों ओर वर्तमान में स्थित तिलवाड़ा, कल्लावास, वैमावास आदि कई गाँव इस विशाल नगर के विविध मुहल्ले थे। खेड़ की सीमा थोब तक थी / संभव है इस नगर की विस्तृत परिधि बालोतरा, जसोल, महेवा तक हो। जसोल-यशपोल खेटक का एक प्राचीन द्वार होना चाहिये। .. प्राचीन समय में खेटक नगर क्रमशः पंवार, परिहार और गोहिल राजपूतों की समृद्धिपूर्ण राजधानी रही। राठोड़वंशीय राव सीहाजी राजस्थान में आये और उनके पुत्र राव आस्थानजी ने वि. सं. 1330 के पश्चात् गोहिलों को खदेड़ कर इस खेड़ पर अधिकार कर लिया था। वि. सं. 1348 के आसपास इस नगर पर जलालुद्दीन खिलजी ने अधिकार कर लिया था और इस नगर को ध्वस्त कर दिया था। कुछ वर्षों बाद राव धुहड़जी के वंशजों ने इस पर पुनः अधिकार कर लिया। राव सलखाजी के पश्चात् * उनके पुत्र वीरमजी का खेड़ पर आधिपत्य रहा। आपसी वैमनस्य में उनकी मृत्यु हो जाने पर सलखाजी के द्वितीय पुत्र प्रसिद्ध पुरुष राव मल्लिनाथजी ने इस पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था। तभी से यह प्रदेश मल्लिनाथजी के नाम पर 'मालानी' कहा जाने लगा। इधर राव वीरमजी के पुत्र चूंडाजी ने वि. सं. 1451 के आसपास मंडोर को अपनी राजधानी बनाया और उनके पौत्र राव जोधाजी ने वि. सं. 1516 में जोधपुर की स्थापना की। निष्कर्ष यह है कि गोहिलों के पश्चात् इस प्रदेश पर राठोड़ों का ही आधिपत्य रहा है। 1. म. म. विश्वेश्वरनाथ रेउ : मारवाड़ का इतिहास, प्रथम भाग, पृ. 47 2. वही, पृ.44 लेख संग्रह 291