________________ श्री बालचन्द्रचार्य एवं श्री ऋद्धिसागरोपाध्याय रचित निर्णय प्रभाकर : एक परिचय ग्रन्थ का नाम 'निर्णय प्रभाकर' देखकर सोचा कि यह किसी शास्त्रीय चर्चा का ग्रन्थ होगा किन्तु, कर्ता के रूप में श्री बालचन्द्राचार्य एवं श्री ऋद्धिसागरोपाध्याय देखकर विचार आया कि सम्भवतः खरतरगच्छ की जो दसवीं मण्डोवरा शाखा श्री जिनमहेन्द्रसूरि से उद्भूत हुई थी, शायद उसी सम्बन्ध में चर्चा हो। ___सहसा विचार आया कि यह शाखाभेद के विचार-विमर्श का ग्रन्थ नहीं हो सकता, क्योंकि इसके प्रणेता श्री बालचन्द्राचार्य मण्डोवरा शाखा के समर्थक थे और श्री ऋद्धिसागरोपाध्याय बीकानेर की गद्दी के समर्थक थे। दोनों के अलग-अलग छोर थे। अतएव एक ही ग्रन्थ के दोनों प्रणेता नहीं हो सकते। . तब फिर यह विचार हुआ कि इस ग्रन्थ को निकालकर अवश्य अवलोकन किया जाए। ग्रन्थ निकालकर देखा गया तो दिमाग चक्कर खा गया कि यह ग्रन्थ तो श्री झवेरसागरजी और श्री विजय राजेन्द्रसूरिजी के मध्य का है जो कि उनके विचार भेदों के कारण उत्पन्न हुआ हो। सहसा बिचार औंधा कि तपागच्छ के अनेकों उद्भट विद्वान होते हुए भी खरतरगच्छ के विद्वानों को निर्णय देने के लिए क्यों पञ्च बनाया गया और उनसे निर्णय देने के लिए कहा गया? वास्तव में खरतरगच्छ के दोनों विद्वान अपने-अपने विषय के प्रौढ़ विद्वान थे और गच्छीय संस्कारों के पोषक होते हुए भी माध्यस्थ, सामञ्जस्य और समन्वय को प्रधानता देते थे। उनके हृदय में गच्छ का कदाग्रह नहीं था किन्तु शास्त्रीय प्ररूपणा का आधार और अवलम्बन था। अतः इन दोनों निर्णायकों का संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक है। बालचन्द्राचार्यः- खरतरगच्छ के मण्डोवरा शाखा के अन्तर्गत आचार्य कुशलचन्द्रसूरि हुए, उनके शिष्य उपाध्याय राजसागरगणि उनके शिष्य उपाध्याय रूपचन्द्रगणि और उनके शिष्य श्री बालचन्द्राचार्य हुए। इनका जन्म संवत् 1892 में हुआ था और दीक्षा 1902 काशी में श्री जिनमहेन्द्रसूरि के कर-कमलों से हुई थी। दीक्षा नाम विवेककीर्ति था और श्री जिनमहेन्द्रसूरि के पट्टधर श्री जिनमुक्तिसूरि ने इनको दिङ्मण्डलाचार्य की उपाधि से सुशोभित किया था। ये आगम साहित्य और व्याकरण के धुरन्धर विद्वान थे। काशी के राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द इनके प्रमुख उपासक थे। अन्तिम अवस्था में तीन दिन का अनशन कर वैशाख सुदी 11, विक्रम संवत् 1962 को इनका स्वर्गवास हुआ था। ____ ऋद्धिसागरोपाध्यायः- महोपाध्याय क्षमाकल्याणजी की परम्परा में धर्मानन्दजी के 2 प्रमुख शिष्य हुए- राजसागर और ऋद्धिसागर। इनके सम्बन्ध में कोई विशेष ऐतिह्य जानकारी प्राप्त नहीं लेख संग्रह 279