________________ 1. अंगुल सप्तति 10. मोक्षोपदेश पञ्चाशिका 2. आवश्यक सप्तति 11. रत्नत्रय कुलक 3. वनस्पति सप्तति 12. शोकहरोपदेशकुलक 4. गाथाकोष 13. सम्यक्त्वोत्पादविधि 5. अनुशासनाङ्गाकुशकुलक 14. सामान्यगुणोपदेशकुलक 6. उपदेशामृतकुलक 15. हितोपदेश कुलक 7. उपदेश पञ्चाशिका 16. कालशतक 8. धर्मोपदेश कुलक 17. मंडलविचार कुलक 9. प्राभातिक स्तुति 18. द्वादशवर्ग आपने नैषधकाव्य पर भी 12000 श्लोक प्रमाणोपेत टीका की रचना की थी किन्तु दुर्भाग्यवश आज वह प्राप्त नहीं है। वर्ण्य विषय / - प्रथम पद्य में गाथा छन्द के लक्षण का वर्णन है। दूसरे पद्य में गुरु और लघु का वर्णन करते हुए दीर्घाक्षर, बिन्दुयुक्त, संयोग, विसर्ग और व्यञ्जन आदि का उल्लेख किया गया है। तीसरे पद्य में चतुष्कल (चार मात्राएं) के प्रस्तार का वर्णन किया गया है। चौथे पद्य में उनके अपवाद का भी वर्णन किया गया है। पांचवें, छटे एवं सातवें पद्य में गाथा के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ चरण में कितनी मात्राएं होती हैं, उसका विवेचन है। आठवें पद्य में गाथा के अतिरिक्त अन्य छन्दों का वर्णन किया गया है। नवमें, दशमें एवं ग्यारहवें पद्य में विपुला, चपला, मुखचपला, जघनचपला के लक्षण प्रतिपादित किये गए हैं। उसके पश्चात् गाथा 13 से 19 तक में गाथा/आर्या के अतिरिक्त विगाथा/उद्गीति, उद्गाथा/उद्गीति, गाहिनी, स्कन्धक आदि के लक्षण देकर लघु और दीर्घ कितने होते हैं, इनकी संख्या बतलाई है। तत्पश्चात् उन-उन छन्दों के प्रस्तारों की संख्या प्रतिपादिक की गई है। २३वें पद्य में ग्रन्थकार ने अपना नाम जिनेश्वरसूरि देकर इस ग्रन्थ को पूर्ण किया है। .. इसकी मूल भाषा प्राकृत है। कुल 23 गाथाएँ हैं। इस पर श्रीमुनिचन्द्रसूरि ने श्रीअजित श्रावक का उत्साह देखकर इस ग्रन्थ की टीका की रचना की। टीका की रचना संस्कृत में है। आगमों में प्रयुक्त छन्दों का ज्ञान और विवेचन करने के लिए यह छन्दोनुशासन ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी है। श्री जिनेश्वराचार्य विरचितं छन्दोनुशासनम् श्रीमुनिचन्द्रसूरि प्रणीत व्याख्योपेतम् __ ऊँ नमः सर्वज्ञाय। नत्वा सर्वसमीचीनं वाचागोचर वाजिनम् / जिनं जैनेश्वरं छन्दो विवृणोमि यथामति / / 1 / / लेख संग्रह 271