________________ व्याकरण की रचना की। श्री गुणचन्द्रगणि (देवभद्राचार्य) ने महावीर चरियं प्राकृत (रचना संवत् 1139) में प्रस्तुत ग्रन्थ की प्रशस्ति देते हुए लिखा है कि जिनेश्वरसूरि के बन्धु और गुरु भ्राता बुद्धिसागरसूरि ने नवीन व्याकरण और नवीन छन्दशास्त्र का निर्माण किया था। अन्नो य पुन्निमायंदसुंदरो बुद्धिसागरो सूरी। निम्मवियपवरवागरणछंदसत्थो पसत्थमई // 53 // व्याकरण, पञ्चग्रन्थी और बुद्धिसागर के नाम से प्रसिद्ध है। छन्दशास्त्र प्राप्त नहीं होता है। सम्भवत है किसी भण्डार में उपेक्षित पड़ा हो / सम्भवतः बुद्धिसागरसूरि ने संस्कृत में पिङ्गलछन्दसूत्र के आधार पर ही छन्दशास्त्र लिखा हो और जिसमें मातृका, वर्णिक, अर्द्धसम, विषम और प्रस्तार आदि का वर्णन हो। उस अवस्था में जिनेश्वराचार्य ने प्राकृत आगम साहित्य का अध्ययन करने की दृष्टि से इस छन्दोनुशासन की रचना की है। जिसमें केवल गाथा और उसके अवान्तर भेद और प्रस्तार संख्या ही निहित है। वर्णिक साहित्य का इसमें उल्लेख नहीं है। टीकाकार टीकाकार का नाम मुनिचन्द्रसूरि प्राप्त होता है। ये मुनिचन्द्रसूरि भी सूक्ष्मार्थविचारसार प्रकरण' के चूर्णिकार श्री मुनिचन्द्रसूरि एक ही हों, ऐसा प्रतीत होता है। श्रीमुनिचन्द्रसूरि बृहद्गच्छीय सर्वदेवसूरि के प्रशिष्य और श्री यशोभद्रसूरि के शिष्य थे। आपको संभवतः श्री नेमिचन्द्रसूरि ने आचार्य पद प्रदान किया था। आपके विद्यागुरु पाठक विनयचन्द्र थे। आप न केवल असाधारण विद्वान् तथा वादीभपंचानन थे, अपितु अत्युग्र तपस्वी और बालब्रह्मचारी भी थे। आप केवल सौवीर (कांजी) ही ग्रहण करते थे, इसी कारण से आप 'सौवीरपायी' के नाम से प्रसिद्ध हुए। आपके अनुशासन में 500 साधु और साध्वियों का समुदाय निवास करता था। तत्समय के प्रसिद्ध वादीकण्ठकुंद्दाल आचार्य वादी देवसूरि जैसे विद्वान् के गुरु होने का आपको सौभाग्य प्राप्त था। गुर्जर, लाट, नागपुर इत्यादि आपकी विहारभूमि के क्षेत्र थे। ग्रन्थ रचनाओं में प्राप्त उल्लेखों को देखते हुए आपका पाटण में अधिक निवास हुआ प्रतीत होता है। आपका स्वर्गवास सं० 1178 में हुआ है। आप तत्समय के प्रसिद्ध और समर्थ टीकाकार तथा प्रकरणकार हैं। आपके प्रणीत टीकाग्रन्थों की तालिका इस प्रकार है:१. देवेन्द्र-नरकेन्द्र-प्रकरण वृत्ति सं० 1168 पाटण चक्रेश्वराचार्य संशो. 2. सूक्ष्मार्थविहारसार प्र० चूर्णी सं० 1170 आमलपुर शि. रामचंद्र सहायता से . 3. अनेकान्तजयपताकावृत्त्युपरि सं० 1171 टिप्पन 4. उपदेशपद टीका सं० 1174 (नागौर में प्रारम्भ और पाटण में समाप्ता) 5. ललितविस्तरापञ्जिका 6. धर्मबिन्दु वृत्ति 7. कर्मप्रकृति टिप्पन ___ प्रकरणों की तालिका निम्न प्रकार है:270 लेख संग्रह