________________ लेखांक 8 संवत् 1479 में भुवनसुन्दरसूरि का नाम प्राप्त होता है। लेखांक 9 संवत् 1481 के लेख में श्री सोमसुन्दरसूरि ने माणिक्यदेव आदिनाथ की यात्रा की थी यह उल्लेख भी प्राप्त होता है। . यह स्तव ऐतिहासिक स्तव है और राणकपुर आदिनाथ मन्दिर का पूर्ण परिचय देता है अतः उसका मूल पाठ दिया जा रहा है: // 0 / / पणमिय नाभिनरे सर नन्दन, गाइसु तिहूअण नयनानन्दन चुमुख धरण विहार सोहइ सुरपुर सम राणिगपुर, तिहां वसइ संघपति धरणागर प्रागवंश सिणगार / / 1 / / अनुक्रमि तवगच्छनायक सुहुगुरु, विहरन्ता पुहता राणिगपुर सुरतरुनिय परिसार सिरिसोमसुन्दरसूरि पुरन्दर, भविककमलवनबोधनदिनकर __ जुगवर कमलागार / / 2 / / अमिय समाणि तसु मुखि वाणी, निसुणीय संघपति नीय मनी आणी विनवय जोडी पाणि भगवन तुम उपदेश ऊपनु, भाव करावा श्रीचुमुखनु हुँ मुझ तुम पसाउ।।३।। पछइ संघपति लगन गिणाया, पण्डित जोसी खेवि तेडाव्या आव्या सुहगुरु पासि संवत चऊद वरिस पंचाणु माह बहुल नवमीनिसि तक्खणु ___ दसमी दिवस मुहाण / / 4 / / मण्डिय धरणिन्द भिड पूरावइ, विसासु गजपीठ बंधावइ आवइ आणंद पुरि, दिन-दिन वाधइ अति दीपन्तु, वीझ महागिरिरइ जीपन्तु खेयन्तु भव दूरि / / 5 / / / / वस्तु।। चुमुख कारणि चुमुख कारणि बहु य वीस्तार, विसासउ गज पिहु ल पणि साठ च्यार सइ परिधि विस्तार इण परि पीठ बन्धावि करि हरख पूरि धरणिन्द सादर सोमसुन्दर सुहुगुरु तणउ निसुणीय वयण विचार शुद्ध दिवस मण्डाविउ सोहइ धरण विहार / / 6 / / / / ठवणि।। 264 लेख संग्रह