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________________ - भाषा कृतियों में उपाध्याय श्री भुवनचन्दजी महाराज ने १६वीं शताब्दी लिखित जो द्वितीय पत्र भेजा है उसके अनुसार राजस्थानी भाषा की लघुकृतियाँ ओर हैं:.१. ऋषभदेव फाग, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, अपूर्ण, गा.-१७, अ. उपाध्याय भुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 2. भ्रमर गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-२, आदि-अंधकारुगमिले प्रगट प्रकाशे, अ. मुनिभुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 3. विरक्ति कारण गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-७, आदि पुनिम रजनी करु उपमाला, अ. मुनिभुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 4. आदिनाथ गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-२, आदि-सकल मंगल कारणऊ रे, अ. मुनिभुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 5. जीरावला पार्श्वनाथ गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-२, आदि-पहिरिवा खिणु चिरु चंदणु, अ. मुनिभुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 6. पार्श्वनाथ गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-२, आदि-सखी से रहमुच्छले कवणु, अ. मुनिभुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 7. नेमिनाथ गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-३, आदि-पमुय देखी नेमी रथ नेमी, अ. मुनिभुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 8. अजितनाथ गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-२, आदि-हितु अहितु विवेक विचारी लई, अ. मुनिभुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 9. वाराण्सी पार्श्वनाथ गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-२, आदि __ अम्ह ची शरीरी सोगुण नही रिजवी, अ. मुनिभुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय 10. जिनचन्द्रसूरि गीत, मुनिमेरु / कमलसंयमोपाध्याय, भाषा - राजस्थानी, स्तवन, गा.-२, आदि चेतना रूपु आतमा विचारी, अ. मुनि भुवनचन्दजी, प्रतिलिपि विनय लेखन प्रशस्ति का विवरण तीन पत्र हैं। साइज 1044 है। पंक्ति लगभग 8-9 है। अक्षर 28 से 30 है और स्वर्णाक्षरों में लिखित है। यह प्रति कहाँ हैं मुझें स्वयं को ध्यान नहीं है। 60 वर्ष के साहित्यिक सेवा कार्य में रहते यह लेखन प्रशस्ति की प्रतिलिपि की थी। किन्तु मुझे आज स्मरण नहीं है कि यह प्रति किस भण्डार की और कहाँ पर थी, अन्वेषणीय है। जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह (सम्पादक मुनि जिनविजयजी), कैटलॉग ऑफ संस्कृत और प्राकृत मैन्युस्क्रिप्ट जैसलमेर कलेक्शन (सम्पादक पुण्यविजयजी) में इसका उल्लेख नहीं है। ॥र्द० ।।अर्हम्। सुपर्ववेलिवर्धिष्णु - विश्ववंशशिरोमणिः।। श्रीमद्गुरुगिरिस्थाणु - र्जीयादूकेशवंशराट् / / 1 / / लेख संग्रह 257
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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