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________________ (241) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः 90 / / सं० 1493 वर्षे फाल्गुन वदि 1 बुधे ऊकेशवंशे श्रेष्ठि गोत्रे श्रे० मम्मणसंताने श्रे० नरसिंह भार्या धीरिणिः। तयोः पुत्र भोजा हरिराज सहसकरण सूरा महीपति पौत्र गोधा इत्यादि कुटुंबं / / तत्र श्रे० हरिराजेन आत्मनस्तथा भार्या मेघु श्राविकायाः पुत्री कामण काई-प्रभृतिसंततिसहिताया स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथबिंब कारितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितम्।। (743) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् 1528 वर्षे आषाढ़ सुदि 2 दिने ऊकेशवंशे रांकागोत्रे श्रे० नरसिंह भा० धीरणि पुत्र श्रे० . हरिराजेन भा० मघाई पु० श्रे० जीवा श्रे० जिणदास श्रे० जगमाल श्रे० जयवंत पुत्री सा० माणकाई प्रमुख परिवारयुतेन श्रीआदिनाथबिंब पुण्यार्थं कारयामासे प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीश्रीश्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीश्रीश्रीजिनचंद्रसूरिभिः।। (836) धर्मनाथ पञ्चतीर्थीः सं० 1536 वर्षे फागण वदि ......... दिने श्रीऊकेशवंशे रांकागोत्रे श्वे० जेसिंघपुत्र श्रे० घिल्ला भा० करणु पु० श्रे० हरिपाल भा० हासलदे पुत्र श्रे० हर्षा भ्रा० जिणदत्तेन भा० कमलादे पुत्र सधरेण सोनपालादि परिवारेण स्वपितृपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः।। (837) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० 1536 वर्षे फा० वदि ......... दिने ऊकेशवंशे रांकागोत्रे श्रे० जेसिंघपुत्र श्रे० घिल्ला भार्या करणू पु० श्रे० हरिपाल भा० हांसलदे पुत्र श्रे० हर्षा भा० ........ श्रे० जिणदत्तेन भा० कमलादे पु० सधारण-सोनपालादिनरिवारेण स्वमातृपुण्यार्थं श्रीनमिनाथबिंब का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजि[न]चन्द्रसूरिभिः।। . मुनिसोमगणि श्री जिनभद्रसूरि के शिष्यों में महोपाध्याय सिद्धान्तरुचि के शिष्य साधुसोमगणि'आदि प्रसिद्ध हैं। सोमनन्दी देखकर मैंने यही सोचा कि ये भी जिनभद्रसूरि के पौत्र शिष्य होंगे। इसीलिए खरतरगच्छ साहित्य कोश, क्रमांक 2232 और 2780 में मैंने सिद्धान्तरुचि का ही शिष्य अंकित किया है। किन्तु उपाध्याय श्री भुवनचन्दजी महाराज ने सितम्बर 2006 में केवल द्वितीय पत्र की फोटोकॉपी भेजी थी, जिसमें मुनिसोम की राजस्थानी भाषा में रचित लघु कृतियाँ थी। इन लघु कृतियों में एक कृति में स्पष्ट लिखा है- कमलसंजमउवझाय सीस करइ नितु सेव ... कमलसंजमउपझाय पदपंकजए कवितु मुनिमेरु इम कहइ अतएव यह स्पष्ट है कि मुनिमेरु कमलसंयमोपाध्याय के शिष्य थे जिन्होंने ने कि उत्तराध्ययन सूत्र पर सर्वार्थसिद्धि टीका 1544 में की थी। हाँ, दीक्षा अवश्य ही सोमनन्दी के नाम से श्री जिनभद्रसूरि ने ही प्रदान की थी। इस सूचना के लिए मैं उपाध्याय भुवनचन्दजी का अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। खरतरगच्छ साहित्य कोश में मुनिसोमगणि रचित दो कृतियों का उल्लेख हुआ है। क्रमांक 2232 पर रणसिंहनरेन्द्रकथा, रचना संवत् 1540 तथा क्रमांक 2780 पर संसारदावा पादपूर्ति स्तोत्र। . 256 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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