________________ श्रीश्रीवल्लभोपाध्यायप्रणीतम् चतुर्दशस्वरस्थापनवादस्थलम् . व्याकरण और न्यायशास्त्र आदि ग्रन्थों के कुछ कठिन विषयों पर शास्त्र चर्चा/शास्त्रार्थ/विचार- . विमर्श करना यह विद्वानों का दैनिक व्यवसाय रहा है। किसी भी विषय को लेकर अपने पक्ष को स्थापित करना और प्रतिपक्ष का खण्डन करना यह कर्त्तव्य सामान्य सा रहा है। इसी प्रकार व्याकरण में स्वर 14 हैं, अधिक हैं या कम। इसके सम्बन्ध में श्रीश्रीवल्लभोपाध्याय ने इस चर्चा में भाग लिया और सारश्वत व्याकरण और अन्य ग्रन्थों के आधार पर 14 स्वर ही स्थापित किए। कवि-परिचय अनुसंधान अंक 26, दिसम्बर 2003 में श्रीवल्लभोपाध्याय रचित मातृका श्लोकमाला के प्रारम्भ में उनका संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इनका और इनकी कृतियों का विशेष परिचय जानने के लिए अरजिन स्तवः और हैमनाममालाशिलोच्छः में मेरी लिखित भूमिका देखनी चाहिए। जन्म-भूमि इस सम्बन्ध में काफी विचार विमर्श किया जा चुका है। श्री वल्लभ राजस्थान के ही थे यह भी प्रमाणिक किया जा चुका है। व्याकरण जैसे शुष्क विषय पर अ. आ. का अन्तर बतलाते हुए सहजभाव से यह लिखना "आईडा बि भाईडा, वडइ भाई कानउ" यह सूचित करता है कि वे जिस किसी शाला/पाठशाला में पढ़े हों, वहाँ इस प्रकार का अध्ययन होता था, जो कि विशुद्ध रूप से राजस्थानी का ही सूचक है। अर्थात् श्रीवल्लभ (बाल्यावस्था का नाम ज्ञात नहीं) जन्म से ही राजस्थानी थे इसमें तनिक भी संदेह नहीं। अनुसंधान अंक 28 में श्री पार्श्वनाथस्तोत्रद्वयम् भी प्रकाशित हुए हैं। जिनका कि इनकी कृतियों में उल्लेख नहीं था। विषय-वस्तु प्रारम्भ में ही स्वर 14 ही हैं इसकी स्थापना करने के लिए प्रतिवादि से 5 पाँच प्रश्न पूछे हैं: 1. स्वर क्या है अथवा वह शब्द का पर्याय है? 2. पर्याय है तो वह नासिका से उत्पन्न पर्याय है? 3. अथवा स्वरशास्त्र में प्रतिपादित निषादिका अवबोधक है? 4. क्या उदात्तादि का ज्ञापक है? 5. अथवा विवक्षित कार्यावबोधक अकारादि संज्ञा का प्रतिपादक है? इन पाँच विकल्पों को उद्भूत करके इनका समाधान भी दिया गया है: 1. विविध जाति के देवता, मनुष्य, तिर्यंञ्च और पक्षी आदि की विविध भाषाएं सुस्वर, दुस्वर आदि अनेक शब्द पर्याय होते हैं अत: यह स्वीकार नहीं किया जा सकता। 244 लेख संग्रह