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________________ सवि सोहासणी सुन्दरी रे ऊभी एकणि तीर। गुण गावई गुरुजी तणा रे पहिरी नवरंगचीर रे॥ ब. 4 // श्री विजयदेवसूरिसरु रे सिद्धिविजय नउ सामि। नाम निरन्तर गाईई रे पाईइं सिवपद ठाम रे॥ ब. 5 // इति श्री विजयदेवसूरीश्वर भास समाप्त (2) श्री विजयदेवसूरि भासद्वय सुरसति मात नमी करी गुण गासुं रे विजयदेवसुरिंद रे। चंद चकोर तणी परि जस दीठई रे होवइ आणंद रे॥ ___ चरण कमल गुरु वन्दउ रे॥१॥ मुनिचन्दउ रे विजयदेवसूरीन्द, प्रभु टालइ रे कुमत्यां ना कन्द। चरण कमल गुरु वन्दउ रे॥ आंकणी बालपणइ जिणई आदर गुरु पासई रे रूडउ संयमभार। भवसायर मांहि बूढुंता भविअण नइरे ऊतारण हार // च. 2 // सुमति गुपति रमणी रमई वली जे दमई रे इंद्री मुनिताज। काज सरई दरिसन थकां गुर आपइं रे शिवपुर नउ राज॥ च.३ // दन्ति पन्ति हीरे जड़ी सोवन घड़ी रे विचइ रूड़ी रेख। पेखि सखि मनि उलसई कमलाकर रे जिम सूरज देखी॥ च. 4 // सोभागी मुझ मलउ सखि तउ टलउ रे भवसायर फेर। सिद्धिविजय कहई तां तपउ गुरु माहरु रे जाँ महियल मेर। च. 5 // मुनिचंदउ रे विजय देव सुरीन्द॥ इति श्री विजयदेवसूरीश्वर भास समाप्त [अनुसंधान अंक-४३] 000 लेख संग्रह 243
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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