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________________ यम, नियम, संयम, विनय, विवेक के धारक हैं। लक्षणों से सम्पन्न हैं / सर्वदा ज्ञान का दान देते हैं / अपयश से दूर हैं। सुख-सौभाग्य की वल्ली हैं। नयनाह्लादक हैं। गुणों के धाम हैं। यशस्वी हैं। काम को पराजित . करने वाले हैं। अन्य दर्शनी भी देखकर आनन्द को प्राप्त होते हैं। सूत्र सिद्धान्तों के जानकार हैं। नर-नारि राजाओं को प्रतिबोध देने वाले हैं। क्रोध रहित हैं। उपशम के भण्डार हैं। शत्रु रहित हैं। भव्य जनों के सुखकारी हैं। गुरु प्रसाद से परमानन्द के धारक हैं। ऐसे पञ्चाचार धारक बृहस्पति तुल्य श्री हीरविजयसूरि जब तक मेरु पर्वत, गगन, आकाश, दिवाकर विद्यमान हैं, तब तक जिनशासन का उद्योत करें। दोनों सज्झायें प्रस्तुत हैं: श्री हीरविजयसूरि सज्झाय प्रणमी सन्ति जिणेसर राय, समरी सरसति सामिणि पाय। थुणसिउं मुझ मनि धरी आणन्द, गुरु श्री हीरविजय सूरिन्द // 1 // श्री आणन्दविमलसूरीसर राय, श्री विजयदानसूरि प्रणमुं पाय। तास सीस सेवइ मुनिवृन्द, गुरु श्री हीरविजय सूरिन्द॥ 2 // समतारस केरु भण्डार, भविक जीवनिइ तारणहार। पाय नमी नर नारि वृन्द, गुरु श्री हीरविजय सूरिन्द॥३॥ देह कान्ति दीपइ जिम भाण, मधुरी वाणी करइ वखाण। पडिबोहि सुर नर देविन्द, गुरु श्री हीरविजय सूरिन्द // 4 // चउदह विद्या गुण रयणनिधान, वाणी सयल सनाव्या आण। श्री विजयदानसूरीसर सीस, प्रतिपउ एह गुरु कोडि वरीस // 5 // (इति) श्री हीरविजयसूरि सज्झाय श्री विशालसुन्दर शिष्य रचित श्री हीरविजयसूरि सज्झाय श्री जिनशासन भासन भाणू, श्री गुरु गिरिमा गुणह निहाणु। श्री तपगच्छ रयणायर चन्द, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द // 1 // विनय करी तुझ प्रणमुं पाय, रायइ गच्छपति जिम सुरराय। विद्या गुणि जीतउ सुर इन्द्र, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द // 2 // जगि जयवन्तउ महिम निधान, जयकारी निरमल अभिधान। शास्त्र तणा तुं जाणई वृन्द, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द॥३॥ यम नियमादिक संयमवन्त, विनय विवेक धरइ भगवन्त। लक्षण लक्षित जस मुझ चन्द, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द॥ 4 // दान ज्ञान नुं आपइ सदा, जगि अपयश पसरइ नवि कदा। सुख सोहग वल्लीनउ कन्द, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द // 5 // 236 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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