________________ नयणा नन्दन गुरु गुण धाम, यश पूरित गुरु निर्जित काम। दरसणि भवीअ लहिइ आणंद, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द॥ 6 // सूत्र सिद्धान्त तणी परिलहि, सुधी विधि भवियण नइ कहइ। - रंजइ बहु नर नारी नरिन्द, प्रणमूं हीरविजयसूरिन्द // 7 // रीस-रहित उपशम-भण्डार, रिपूवर्जित मनि जन सुखकार। गुरु पसाई लहुं परमाणंद, प्रणमुं हीरविजयसूरिन्द॥ 8 // इय सुगुणु सुहाकर परम क्षमापर, श्री हीरविजयसूरिन्द वरो। वरवाणी मनोहर सुरगुरु पुरन्दर, सुन्दर पञ्चाचार धरो॥ जा मेरु महीधर गगन दिवायर, तां चिर प्रतपउ एह गुरो। श्री विशालसुन्दर सीस पयम्पइ, जिनशासन उद्योत करो॥९॥ इति श्री हीरविजयसूरि सज्झाय [अनुसंधान अंक-४२] 000 लेख संग्रह 237