________________ नित उघराणी एह नाणुं नीमन नवकार-नुउं / ग. वि. 26 // भाद्रवडइ घणउ लाभ पुण्य तणुं पोतुं भरिउं॥ ग. वि. 27 // ताहारउ भलउ रे वाणउत्र! विमल दान गुण आगलउ॥ ग. वि. 28 // तपगच्छ केरउ राय श्री आणंदविमलसूरि गुरु भला // ग. वि. 29 // तास सीस सुपवित्र श्री विजयदानसूरि जीवउ घणउं // ग. वि. 30 // धन-धन भावड़ तात धन धन भरमादे माउलि // ग. वि. 31 // धन-धन लखमण पुत्र जीणइ दीक्षा लई जग तारीयउ॥ ग. वि. 32 // भीम भणइ भगवंत भजसिइ ते भजसि इव जलतर्यां // ग. वि. 33 // इति श्री विजयदानसूरि भास [अनुसंधान अंक-४२]. 234 लेख संग्रह