________________ श्री विजयदानसूरि भास विणजारा रे सरसति करउ पसाउ। श्री विजयदानसूरि गाईइ गच्छनायकजी रे॥ वि. 1 // गुण छत्रीस भण्डार जंगम तीरथ जाण // वि. 2 // आव्यो मास वसन्त व्याहार विदेश गुरु करईं // ग. वि. 3 // जोया. देश विदेश लाभ घणउ गुजर भणी॥ ग. वि. 4 // मुगति थी के क .... पूंजी पञ्च महाव्रत भरी // ग. वि. 5 // पोठी वीस समाधि दुविध धर्म गुणी गुल भरी // ग. वि. 6 // सुमति गुपति रखवाल ताहरइ आठइ साथी अति भला॥ ग. वि.७॥ जयणा शंबल साथी जीता दाणी कषाय ते दोहिल्या॥ ग. वि.८॥ संवत् सोल बार नटपद्र नयर पधारिया // ग. वि. 9 // साहामइ संघ पहुँच तिहां श्री संघ वित वेचइ घणउ॥ ग. वि. 10 // घरि घरि उच्छव रङ्ग मङ्गल गाई मानिनी॥ ग. वि. 11 // साटइ पुण्य पवित्र तिहां नवतत्त्व वानी दाखवि॥ ग. वि. 12 // जोई लेज्यो जाण पारखि हुइ ते परखयोग / ग. वि. 13 // बहुरा श्रावक सारा तिहां समकित धारी हरखिआ॥ ग. वि. 14 // ताहारा टाडा मांहि मु.... लति रोकड़ी वस्त घणी // ग. वि. 15 // भरीया पुण्य भण्डार धन नडियाद सोहामणुं // ग. वि. 16 // साहा जिणदास सुतन्न साहा कुंअरजी घरी चउमासि रया // ग. वि. 17 // आगली आव्यउं चउमासी वस्तणुं फरकुं थयुं // ग. वि. 18 // तप जप पोसह नीम बहु उपधान ते आदरयां // ग. वि. 19 // मासखमण मन रङ्गी पाख छट्ठ अट्ठम घणा॥ ग. वि. 20 // दिनि दिनि अधिकउ लाभ भूलां मारगि लाइया॥ ग. वि. 21 / / ताहरइ वस्तु अनेक भाईग होसी ते वहुरसि (वहोरशे) // ग. वि. 22 // ताहरा विणजु मझारी खोटि न आवइ खरचतां // ग. वि. 23 // ताहरइ तप भण्डार वावरता वाधइ घणूं॥ ग. वि. 24 // दिन दिन बिपरवेस उभयां पडिकमणु करुं॥ ग. वि. 25 // -- लेख संग्रह 233