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________________ . से 1535 के मध्य में प्राप्त हो चुका था। इनके उपदेश से 1529 में लिखित शिलोपदेश माला की प्रति पाटण के भण्डार में हैं। इस रचना को ऐतिहासिक रचना मानकर ही प्रस्तुत किया जा रहा है: महोपाध्याय अनन्तहंसगणि स्वाध्याय जय जिणशासण-गयणचन्द, तिहूअण-आणन्दण। जय जण-नयणानन्द-कन्द, मदमान-निकन्दण // उवझाया सिरि रायहंस-अवयंस भणीजइ। मुणिवर श्रीय अनन्तहंस-गुण किम्पि थुणीजइ॥१॥ दक्षिणी ढाल ए सुणिवरू ए सोहमसामि नामिइ नवनिधि पाई। तुम दरिसणिए परमाणंद सम्पद सुक्ख सकाराहीइं॥२॥ तुम्ह गुरुअडि ए गुणह पमाण मेरु समाण वखाणीइ। तुम्ह वयणलाए अमीय कलोल सोल कला ससि जाणीइ॥३॥ तुम्ह सूरति ए सहजि सुरंग अंग अग्यार मुखिइ धारइ। एह आगम ए छंद पुराण जाणपणई जणमण हरइ॥ 4 // तपगच्छि दीपिइ मयण जीपइ माण मोह निराकरइ। आदिल ऋषि आचार अनुपम सुपरि संजम मनि धरइ॥ __ आषाढ़ जलधर सधरधार धोरणी जिम विस्तरइ। वरिसन्ति वाणी सरस को नरवर समुभर झिरि मिरि झडि करइ॥५॥ ___राजा वल्लभभाषा धन धन ईडर नयर नाह लीलापति हिन्दु पातसाह। नव कवित विनोद कला सुजांण रंजविउ यस भुपति राय भाण॥६॥ गुरु महिमा महिमण्डलि अनन्त गुरु दिनकर अवनि... वन्त। गुरु तप जप संयम तेजवन्त गुरू पञ्चम कालि प्रतापवन्त // 7 // गुरि विनय विवेक समायरीय गुरि विजुवउ चअल केरिय। गणधर श्री जिनमाणिक्क-पाय तुढे तुम्ह आप्यउ ए पसाय॥८॥ रागिणी राग ता पुण तपगच्छपति सिय लखिमीसागरसूरि। 230 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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