________________ जैनागमों की अप्रकाशित संस्कृत व्याख्यायें गणिपिटक के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त एकादशांग अंगप्रविष्ट आगम कहलाते हैं। नन्दीसूत्र और आवश्यक सूत्र का अंश पाक्षिक सूत्र के अनुसार अंगबाह्य आगमों के कालिक और उत्कालिक भेद प्राप्त होते हैं / तदनुसार उपांग, प्रकीर्णक, छेद, मूल सूत्रादि का अंगबाह्य में ही समावेश होता है। प्राचीन उल्लेखों की गणनानुसार अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य आगमों की संख्या 84 मान्य रही है। इनमें से कतिपय आगम आज उपलब्ध भी नहीं है। लगभग 10-11 शताब्दियों से मान्य परम्परा में आगमों की संख्या 45 मान्य रही है / यथा - 11 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्णक, 6 छेद, 4 मूल और 2 चूलिका सूत्र / स्थानकवासी और तेरापंथी समुदायों की मान्यतानुसार आगमों की संख्या 32 ही अंगीकृत रही है। आगम साहित्य, व्याख्या साहित्य के कारण पंचांगी के नाम से भी मान्य एवं प्रसिद्ध है। पंचांगी अर्थात् मूल, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका। . मूल - तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा अर्थरूप में वर्णित, गणधरों द्वारा सूत्र रूप में गुम्फित और सक्षम पूर्वाचायों द्वारा वाचनाओं के माध्यम से स्थापित एवं सुरक्षित सूत्रपाठ मूल आगम हैं। : नियुक्ति और भाष्य - व्याख्या साहित्य में नियुक्तियाँ और भाष्य मूलत: मूलागम भाषा अर्थात् प्राकृत भाषा में आबद्ध हैं और पद्यबद्ध हैं। नियुक्तियों का मुख्य प्रयोजन मूल ग्रन्थों में आगत पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या रहा है तो भाष्य इन शब्दों में छिपे हुए अर्थबाहुल्य को अभिव्यक्त करते हैं। नियुक्तिकारों में मुख्यत: आचार्य भद्रबाहु और गोविन्दाचार्य हैं तो. भाष्यकारों में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण एवं संघदासगणि मुख्य हैं। चूर्णि - चूर्णियाँ प्राकृत अथवा संस्कृत मिश्र भाषा में है। चूर्णियाँ नियुक्तियों का अनुसरण करती हुई आगमगत मुख्य शब्दों और पदों को चूर्ण-चूर्ण कर मूल के रहस्य को अधिकाधिक स्पष्ट करने का प्रयास करती हैं। चूर्णिकारों में मुख्यतः जिनदासगणि महत्तर, अगस्त्यसिंह, सिद्धसेन, प्रलम्बसूरि आदि हैं। टीका - संस्कृत भाषा में निर्मित व्याख्या साहित्य / इसमें प्राचीन नियुक्ति, भाष्य और चूर्णियों में प्रतिपादित विषयों का विस्तृत विवेचन तथा नये-नये हेतुओं और दृष्टान्तों द्वारा उन्हें पुष्ट किया गया है। व्याख्याकारों ने टीका शब्द के पर्याय के रूप में अनेक शब्दों का प्रयोग किया है। जैसे - वृत्ति, बृहद्वृत्ति, विवृत्ति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्तिक, दीपिका, अवचूरि, अवचूर्णि, टिप्पनक, आदि। आगमसाहित्य पर शताधिक व्याख्याकारों ने शताधिक व्याख्या साहित्य का निर्माण किया है जिनमें से प्रमुख टीकाकारों के रूप में दिग्गज, आप्त एवं उल्लेखनीय हैं:- जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, याकिनीमहत्तरासूनु, हरिभद्रसूरि, कोट्यार्य, कोट्याचार्य, शीलांकाचार्य, नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरि, वादिवेताल, शान्तिसूरि, द्रोणाचार्य, मलयगिरि, मलधारी हेमचन्द्राचार्य, नेमिचन्द्रसूरि, श्रीचन्द्रसूरि, तिलकसूरि, नमिसाधु, क्षेमकीर्ति आदि। लेख संग्रह 13