________________ " ॥छ॥ श्री मज्जिनदत्तसूरीणां दशवैकालिकवृत्तिचूर्णिश्च // छ / प्रधानाक्षरा // " यह १२वीं शती के अन्तिम चरण की है। क्रमांक 85 की ये पटड़ियाँ हैं। यह चित्रपट्टिका खंडित है। इस पर भगवान् महावीर के जीवन प्रसंगों का चित्रांकन है। 10. इस पट्टिका पर त्रिभुवनगिरि के नरपति कुमारपाल आचार्य जिनदत्तसूरि की सेवा में भक्त मुद्रा में बैठे हैं। साथ ही अन्य आचार्य, साधु और भक्तों के नामांकित चित्र हैं। उल्लेख है - 'गुणसमुद्राचार्य। पण्डित ब्रह्मचन्द्र / सहणपाल / अनंग / नरपति श्रीकुमारपालभक्तिरस्तु / श्रीजुगप्रधानागम श्रीमजिनदत्त सूरयः।' नामांकित चित्रयुक्त होने से यह पटड़ी भी अत्यन्त महत्त्व की है। यह पट्टिका वस्तुतः जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार की ही है, किन्तु वर्तमान में थाहरुशाह ज्ञान भंडार में सुरक्षित हैं। .. इस भंडार की अन्य भी कई नामांकित वादीदेवसूरि, जिनदत्तसूरि आदि की चित्रपट्टिकायें यहाँ से गायब हो गई हैं / चार पट्टिकाओं की तो मुझे जानकारी है। दो पटड़ियाँ तो एक पुरातत्त्वाचार्य ने दिल्ली के एक व्यापारी को बेच दी थीं। उसने आगे विदेशियों को बेची या नहीं, ज्ञात नहीं है। एक पटड़ी पालीताणा के ज्ञान भंडार में है और एक बीकानेर के संग्रहालय में सुरक्षित है। इस प्रकार विविध दृष्टियों से इस भंडार/संग्रह का विश्लेषण करने पर स्पष्टतः सिद्ध होता है कि ताड़पत्रीय ग्रन्थों की बहुलता, प्राचीनतम विविध विषयक शास्त्रों की प्रचुरता, अन्यत्र अप्राप्त ग्रन्थों की अधिकता एवं 800-900 वर्ष पूर्व की चित्रित काष्ठ-पट्टिकाओं आदि के कारण यह संग्रह वस्तुतः अमूल्य है, बेजोड़ है और अद्वितीय है। [महोपाध्याय विनयसागर-जीवन, साहित्य और विचार] ____om - लेख संग्रह