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________________ 810 आराधनाचुपई हरिकलशमुनि 1017 मनोरथमाला जिनसमुद्रसूरि 1708 1025 राजसिंघकुमारचतुष्पदी जिनचन्द्रसूरि 1687 1038 दिक्पटचौरासीबोलविसंवाद जिनसमुद्रसूरि 1491 विचारषट्त्रिंशिकाप्रश्नोत्तर जिनसमुद्रसूरि 1724 स्तवनादि स्फुट संग्रह (गुटका) आवश्यकता है इस शाखा के कवियों द्वारा निर्मित समस्त साहित्य बेगड़गच्छ ग्रन्थावली के नाम से प्रकाशित किया जाए। चित्रित काष्ठपट्टिकायें ताड़पत्रीय ग्रन्थों की सुरक्षा को दृष्टि में रखते हुए प्रति के ऊपर-नीचे शास्त्र के माप के अनुसार लकड़ी की सुदृढ़ पटड़ियाँ रखकर उसे डोरी से कसकर बाँध देते थे। ऐसी पटड़ियों में से 9 विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण पट्टिकायें इस समय प्रदर्शनी मंजूषा में आगन्तुक शोधार्थियों एवं दर्शनार्थियों के लिये रखी हुई हैं। ये सब पट्टिकायें चित्रित हैं। चित्रकलामर्मज्ञों और पुरातत्त्ववेत्ताओं की दृष्टि से ये पटड़ियाँ १२-१३वीं शती के पूर्वार्ध की हैं और बहुमूल्य हैं। आठ सौ-साढ़े साठ सौ वर्ष पुरानी पटड़ियों पर अंकित चित्र सुरम्य हैं, चित्रों के रंग शोभनीय हैं, नयनाभिराम एवं दर्शनीय हैं। इन पट्टिकाओं का परिचय है - 1. चित्र-पट्टिका पर श्रमण भगवान् महावीर के पाँचों कल्याणकों - च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान और निर्वाण के दृश्य अंकित हैं। .2-3. चौबीस तीर्थङ्करों की माताओं के दर्शनीय चित्र अंकित हैं। 4. इस पट्टिका के एक ओर जलक्रीड़ा सम्बन्धी चित्र चित्रित हैं। इसी में 'जिराफ' का चित्र भी अंकित है, जो प्राणीशास्त्र की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इससे स्पष्ट है कि जिराफ भी भारतीय है अथवा भारतियों का इससे परिचय या ज्ञान था। ___ इस पट्टिका के दूसरी ओर चौदह महास्वप्न- हस्ति, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, पुष्पमालायुग्म, चन्द्र, सूर्य, ध्वज, पूर्णकलश, पद्मसरोवर, क्षीरसमुद्र, विमान, रत्नराशि, निर्धूम अग्निशिखा के चित्र हैं। नंदी, सरोवर, विषयक प्राकृतिक दृश्यों के चित्र हैं। भगवान ऋषभदेव के जीवन से सम्बन्धित हैं - (1) आदिनाथ प्रभु को भिक्षा में हाथी, घोड़ा, रत्न, स्त्री दान को अस्वीकार करते हुए और श्रेयांसकुमार का इक्षुरसदान स्वीकार करते हुए दिखाया गया है। (2) भगवान् ऋषभ के पालित पुत्र नमि और विनमि द्वारा राज्ययाचना आदि के प्रसंग हैं। यह निशीथ सूत्र की पट्टिका है। इस पट्टिका का रंग अधिक गहरा और नयनाभिराम है। हाथी, सिंह आदि प्राणियों के शोभन चित्र हैं। साथ ही इस पर 'निसीहभाष्यपुस्तकं श्री जयसिंहाचार्याणम्' लेख है। इससे स्पष्ट है कि यह निशीथ भाष्य की प्रति श्री जयसिंहाचार्य की है।। 8. यह पट्टिका चित्ररहित होने पर भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह खरतरगच्छालंकार महाप्रभाविक युगप्रधान दादा श्री जिनदत्तसूरिजी महाराज के नाम से अलंकृत है, पट्टिका पर लिखा है - 'लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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