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________________ 72 (का.) पंच प्रस्थान न्यायमहातर्क अभयतिलक र.सं. १३वीं न्यायशास्त्र विषमपद व्याख्या धर्मशिक्षा प्रकरण प्रा. सं. जिनवल्लभ-जिनपाल औपदेशिक बेगड़ गच्छ का साहित्य जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका है कि इस भंडार में संगृहीत कागज पर लिखित हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह बेगड़ गच्छीय ज्ञान भंडार के नाम से भी प्रसिद्ध है। बेगड़ गच्छ वस्तुतः खरतरगच्छ की ही एक शाखा है, जो पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रथम चरण में जिनोदयसूरि के समय में जिनेश्वरसूरि से उद्भूत हुई थी। महमूद शाह बेगड़ा इनका भक्त था - "मैं भी बेगड़, तुम भी बेगड़ गुरु गच्छ नाम। सेवक गच्छ नायक सही बेगड़, अविचल पामौ ठाम।" के अनुसार जिनेश्वरसूरि की यह परम्परा बेगड़ के नाम से ही प्रसिद्ध हुई। जिनेश्वरसूरि स्वयं छाजहड़ गोत्रीय थे, इसलिये परवर्तीकाल में यह गोत्र भी बेगड़ छाजहड़ कहलाया। इस शाखा का प्रमुख केन्द्र जैसलमेर था और प्रचार-प्रभाव सिन्ध में अधिक था। इसी परम्परा के आचार्यों द्वारा स्थापित एवं संवर्धित यह संग्रह है। इस परम्परा के यति वर्ग का विलोप हो जाने के कारण सिन्ध प्रदेश में इस शाखा के विद्वानों द्वारा सर्जित कोई साहित्य आज उपलब्ध नहीं है, जो कुछ उपलब्ध है वह जैसलमेर के इसी संग्रह में है। __इस शाखा में अनेक विद्वान एवं कवि आचार्यों ने राजस्थानी भाषा में विपुल साहित्य का सर्जन किया है, जिनमें जिनसमुद्रसूरि प्रमुख हैं, प्रसिद्ध हैं। इनकी लाख श्लोक प्रमाण से भी अधिक रचनायें प्राप्त हैं। इस शाखा के विद्वान कवियों द्वारा रचित निम्नांकित कतिपय रचनाओं की एकमात्र प्रतियाँ यहाँ प्राप्त हैं। ये कृतियाँ अन्यत्र प्राप्त नहीं हैं - कागज प्रति के क्रमांक कृति नाम कर्ता रचना संवत् 306 मृगापुत्रचरित्रसंधि जिनसमुद्रसूरि : 400 ऋषिदत्ताचौपाई महिमसमुद्र 1698 409 गुणावली-गुणकरंडकरास उदयसूरि 1773 411 जम्बूस्वामिचरितरास जिनेश्वरसूरि शिष्य 1603 हरिबलरास जिनसमुद्रसूरि 557 समुद्रप्रकाशविद्याविलासचौपाई जिनसमुद्रसूरि 643 भीमसेनचौपाई जिनसुन्दरसूरि . 1755 663 नवरससागर-उत्तमराजर्षि चरित्र रास जिनसुन्दरसूरि 665 वसुदेवचरित्र रास महिमसमुद्र 666 गुणसुन्दरचौपाई जिनसुन्दरसूरि 673 पांचपांडवरास जिनचन्द्रसूरि 694 तत्त्वप्रबोधनाटक जिनसमुद्रसूरि 1730 715 भर्तृहरिवैराग्यशतक टीका जिनसमुद्रसूरि हरिबलचरित्र-विबुधप्रियारास महिमसमुद्र 762 ज्ञानसुखड़ी धर्मचन्द्र 1767 431 1698 1740 719 - लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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