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________________ 1279 १३वीं (१४वीं), मुद्राराक्षस (1314), प्रबोधचन्द्रोदय (1318), वेणी संहार (१४वीं), नागानन्द नाटक (१३वीं) आदि की भी १३वीं एवं १४वीं शताब्दी की लिखित ताड़पत्रीय प्रतियाँ यहाँ समुपलब्ध हैं। अतः तत्तद् विषयक विद्वानों का कर्तव्य है कि उक्त ग्रन्थों का संशोधन-सम्पादन करते समय पाठ भेदों की दृष्टि से इस ज्ञान भंडार में संगृहीत एवं सुरक्षित प्राचीन ताड़पत्रीय प्रतियों का अवश्यमेव उपयोग करें। कागज पर लिखित यहाँ जो प्राचीनतम ग्रन्थ उपलब्ध हैं, वे तो प्राचीनता की दृष्टि से विश्व में बेजोड़ हैं, उनमें से कतिपय हैं - 1324 (1-2) सूक्ष्मार्थ विचारसार एवं षड्शीतिप्रकरण 1246 1300 (1-4) दशवैकालिक - उत्तराध्ययन आचारांग 1277 सूत्रकृतांगसूत्रनियुक्ति 1301 सनत्कुमारचरित्र महाकाव्य जिनपालगणि 1278 1274 (1-2) न्यायतात्पर्यटीका वाचस्पतिमिश्र 1279 1274 (3). न्यायभाष्य टिप्पणीसह वात्स्यायनमुनि 1279 1275 न्यायवार्तिक टिप्पणीसह भारद्वाज साथ ही कागज पर लिखित निम्नांकित ग्रन्थ भी अत्यन्त विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण हैं - - ' x 72 . पंचप्रस्थान न्यायमहातर्क-विषमपदव्याख्या अभयतिलकगणि न्यायालंकार कर्पूमंजरीनाटिका कूर्परकुसुमभाष्य प्रेमराज 1538 गीतगोविंद सटीक टी. जगद्धर अंजनासुन्दरीकथानक गुणसमृद्धि महत्तरा १५वीं धर्मशिक्षाप्रकरण सटीक जिनवल्लभ, जिनपाल १४वीं - उपरिवर्णित/चर्चित ताड़पत्र व कागज पर लिखित विशिष्टतम ग्रन्थों में से अधिकांशतः ग्रन्थ अनेक विद्वानों द्वारा समय-समय पर संशोधित-सम्पादित होकर विभिन्न संस्थाओं द्वारा प्रकाशित हो चुके हैं तथापि क्रमांक के आगे x चिह्नांकित ग्रन्थ मेरी स्मृति के अनुसार अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। चिह्नांकित ग्रन्थ विविध विषयक हैं, वैशिष्ट्य युक्त हैं, महत्वपूर्ण हैं, साथ ही इनमें से कतिपय ग्रन्थ तो ऐसे हैं जिनकी एकमात्र प्रति यहीं प्राप्त हैं, अन्यत्र नहीं। अतः ऐसे दुर्लभ ग्रन्थों का प्रकाशन होना अत्यावश्यक है। विद्वानों और संस्थाओं का कर्तव्य है कि वे इस ओर प्रयत्नशील हों। चिह्नांकित ग्रन्थों में से निम्नांकित ग्रन्थों का प्रकाशन तो शीघ्र ही होना अपेक्षित है - 34 ___ ज्योतिष्करण्डक टीका प्राकृत पादलिप्ताचार्य आगम 250 आदिनाथ चरित्र प्राकृत वर्धमानसूरि र. सं. 1160 चरित्र प्रत्येकबुद्धचतुष्कचरित्र सं. लक्ष्मीतिलक र.सं. 1311 काव्य निर्वाणलीलावतीमहाकथाउद्धार जिनरत्नसूरि र.सं. 1341 कथा पंचग्रन्थी-बुद्धिसागर व्याकरण बुद्धिसागरसूरि र.सं. 1080 व्याकरण - 1278 272 / 351 292 - लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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