SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 238
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आस भणति अईसा सुगुरु तुम्ह जयउ संघपति आस धीर तनू रे। संघपति.महिपाल जयपाल, जयकेसरिसूरि प्रसन्नू रे॥ 4 // मिलउ सहेली॥ [इति] श्री गुरु भास (3) हरसूर प्रणीत ऊलट अंगि अपार कामिनि करउ सिणगार मोतीय थाल भरी वधावउजी। सहीए अम्ह सुहगुरु आइला श्रीजयकेसरिसूरी। सहीए.॥ 1 // आ.। अहंव सूहव आवउ माणिक चउक पूरावउ। गछनायक गुण गाउजी। सहीए.॥२॥ जयकित्तिसूरि पाटोधर कलि गोयम अवतार। तरणतारण पाय सेवउजी। सहीए.॥३॥ हरसूर भणइ सुवचन साह देवसी तन। धन संघ प्रसन्नूजी। सहीए.॥४॥ [इति] श्री गुरु गीत (4) चालि सही गुरु वंदीइ पहिरी नव सिणगार। गछ नरेसर भेटीइ, जिम हुई जय जयकार॥ वेगि वधावउ रे सुंदरी, मोती चउक पूरेवि। सरीसर जयकेसरी. अविहड भाव धरेवि॥१॥ वेगि वधावउ रे। जइ गुरु दीठा आपणा, चतुर पमइ चउसाल। सफल हूंया अम्ह लोयणा आज सफलिउ सुरसाल // 2 // वेगि.। स्वाद पणइ जिसी सेलडी, जाणे साकर दूध / कइहो मोहण वेलड़ी, वाणी अमीय ति सूध // 3 // वेगि.। सरस सकोमल सीयली, सुणतां सविहुं सुहाइ। वाणी अम्ह गुरु केतली, ऊपम कहणि न जाइ॥ 4 // वेगि.। सारद ससिकर निरमलउ, खीरोदधि सम वान। दीपइ दहदिसि ऊजलु, जगि जस मेरु समान // 5 // वेगि.। जंगम गोयम गणहरू, सीलिई जंबुकुमार। सोहगवइ वरमुणीसरू, विद्यां वइरकुमार॥ 6 // वेगि.। जे गुण गाइं गुरु तणा, आणी हृदय विवेक। पातक जाइं. तेह तणां, पामइं भोग अनेक // 7 // वेगि.। इति श्री पूज्य भास [अनुसंधान अंक-४३] लेख संग्रह 227
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy