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________________ अञ्चलगच्छीय श्री जयकेसरीसूरि भास (1) श्री जीराउलि वास पूरई रे मनची आस। आणीय मनि उल्लास पणमिय जिनवर पास॥ सखि गाइसिउं ए अञ्चलगच्छ नरिंद। अईया गाइसिउं ए अञ्चलगच्छ नरिंद॥१॥ लाखणदेवि उदार जाइउ सुत सविचार। धन धन राजकुमार, आदरिउ सूरिपयभार // वंदिसिउं ए श्री जयकेसरिसूरि। अईया वंदिसिउं ए अञ्चलगच्छ नरिंद॥ 2 // देवसीय साह मल्हार, अञ्चलगच्छ सिणगार। पूरव रिषि आचार, पालई ए निरतीचार॥ सखि गाजइ ए गणहर मुणिवर थाटि। अईया गाजइ ए अञ्चलगच्छ नरिंद॥३॥ गुरु गोयम अवयार, शासन तणउ आधार। जाणइ सयल विचार, गुरुयडि गुण भंडार // सखि दीपइ ए दसदिसि कीरति जास। अईया दीपइ ए अञ्चलगच्छ नरिंद॥ 4 // गुरु मुख पूनिम चंद, दीठइ परमाणंद। रंजण गंगनरिंद, सेव करई सूरिंद॥ सखि प्रतपउ ए अम्ह गुरु जां जगि सूर। अईया प्रतपउ ए अञ्चलगच्छ नरिंद॥५॥ [इति] श्री गुरु भास (2) कवि आस प्रणीत आज घरि घरिइं वधामणां, हरख लइ चतुर्विध संघ ए। आरे श्री विधिपक्ष गच्छनायक, जयवंत जयकेसरिसूरिंद रे॥ मिलउ सहेली सुगुरु तणा गुण गाउ ए। कनक थाल मोतीडां भरि जयकेसरिसूरि वधावउ रे॥१॥ // मिलउ सहेली। आंचली॥ जिम तारायण चांदलउ, तिम मुखि अमीय झरंतू ए। सूरि श्रीजयकेसरिसुगुरु अम्ह तरणिवरि तपंतू रे॥२॥ मिलउ सहेली॥ सुललित वाणी सुणीजइ, श्रवणि अमीरस पीजइ रे। श्रीजयकेसरिसूरि तरणतारण सिरि लुंछणडां करीजइ रे॥ 3 // मिलउ सहेली॥ 226 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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