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________________ . . षडभाषामय श्रीऋषभप्रभुस्तव के कर्ता श्री जिनप्रभसूरि हैं अनुसंधान अंक 39 पृष्ठ 9 से 19 में प्रकाशित षडभाषामय/अष्टभाषामय श्रीऋषभप्रभुस्तव अवचूरि के साथ प्रकाशित हुआ है। इसके सम्पादक मुनि श्री कल्याणकीर्तिविजयजी हैं। संशोधित और शुद्ध पाठ देते हुए इस स्तव को प्रकाशित कर अनुसंधित्सुओं के लिए प्रशस्ततम कार्य किया है, इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इसके कर्ता के सम्बन्ध में (पृष्ठ 10) सम्पादक ने अनुमान किया है कि इसके कर्ता ज्ञानरत्न होने चाहिए, जो कि सम्यक् प्रतीत नहीं होता है। ___ इस स्तोत्र का ३९वाँ पद्य "कविनामगर्भं चक्रम्" अर्थात् चक्रबद्ध चित्रकाव्य में कर्ता ने अपना नाम गुम्फित किया है। जो कि चक्रकाव्य के नियमानुसार इस प्रकार है: PREM HERE IB शुभतिलकक्लृप्तोऽसौ भाषास्तवः अर्थात् इस श्लोक के प्रथम द्वितीय तृतीय चरण के छट्ठा अक्षर ग्रहण करने से 'शु' 'भ' 'ति' क्रमशः चौदवाँ अक्षर ग्रहण करने से 'ल' 'क' 'क्लु' पुनः इन तीनों चरणों के प्रारम्भ के तीसरा अक्षर ग्रहण करने पर 'तो' 'सौ' 'भा' और सतरवां अक्षर ग्रहण करने से 'षा' 'स्त' 'व:' अर्थात् शुभतिलकक्लृप्तोऽसौ भाषास्तवः ग्रहण किया जाता है। इस शब्दविन्यास से शुभतिलक क्लृप्त यह भाषास्तव है। 222 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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