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________________ 6 तक इस स्तोत्र के प्रणेता हों सम्भावना कम ही नजर आती है। मेरे नम्र विचारानुसार इस कृति के प्रणेता श्री प्रसन्नचन्द्रसूरि के विनेय ही होने चाहिए। देवभद्रसूरि सुविहित पथ-प्रदर्शक, चैत्यवास के उन्मूलक खरतरगच्छविरुद धारक श्री जिनेश्वरसूरि के शिष्य उपाध्याय श्री सुमतिगणि के शिष्य हैं। इनका दीक्षानाम गुणचन्द्रगणि था। आचार्य बनने के पश्चात् देवभद्रसूरि के नाम से प्रसिद्ध हुए। श्री अभयदेवसूरि के पास इन्होंने शिक्षा-दीक्षा एवं आगमिक अध्ययन किया था इसीलिए गणधरसार्द्धशतक बृहवृत्तिकार सुमतिगणि और खरतरगच्छ गुर्वावलीकार श्री जिनपालोपाध्याय ने अभयदेवसूरि के पास विद्या ग्रहण करने वाले और उनकी कीर्तिपताका फैलाने वाले शिष्यों का उल्लेख करते हुए लिखा है: सत्तर्कन्यायचर्चार्चितचतुरगिरः श्रीप्रसन्नेन्दुसूरिः, सूरिः श्रीवर्धमानो यतिपतिहरिभद्रो मुनीड्देवभद्रः। इत्याद्या सर्वविद्यार्णवसकलभुवः सञ्जरिष्णूरुकीर्तिः, स्तम्भायन्तेधुनापि श्रुतचरणरमाराजिनो यस्य शिष्याः॥ इस पद्य का उल्लेख श्री जिनवल्लभगणि ने चित्रकूटीय वीरचैत्य प्रशस्ति में भी किया है। देवभद्रसूरि प्रसन्नचन्द्रसूरि के अत्यन्त कृपा पात्र थे। यही कारण था कि अपनी सान्ध्य वेला में प्रसन्नचन्द्राचार्य ने देवभद्रसूरि को कहा था - "मैं आचार्य अभयदेवसूरि की अन्तरंग इच्छानुसार जिनवल्लभगणि को उनके पाटं पर अभिषिक्त न सका, अतः इस कार्य को तुम्हें सम्पन्न करना है।" देवभद्रसूरि ने यह कार्य संवत् 1169 में सम्पन्न किया और जिनवल्लभ को आचार्य अभयदेवसूरि का पट्टधर घोषित किया। ___- आचार्य देवभद्रसूरि जैनागमों के साथ कथानुयोग के भी उद्भट विद्वान् थे। उनके द्वारा प्रणीत निम्न ग्रन्थ प्राप्त होते हैं:महावीर चरित्र (1139) कथारत्नकोश (1158) पार्श्वनाथ चरित्र (1168) प्रमाण प्रकाश संवेगमञ्जरी अनन्तनाथ स्तोत्र * ' चतुर्विंशति जिन स्तोत्राणि स्तम्भ तीर्थ पार्श्वनाथ स्तोत्र पार्श्वनाथ दशभव स्तोत्र वीतराग स्तोत्र जिनचरित्र और स्तोत्रों को देखते हुए यह कृति भी इन्हीं की मानी जा सकती है। वर्ण्य-विषय प्रस्तुत स्तोत्रों में 24 तीर्थंकरों के 32 स्थानकों का वर्णन है। प्रत्येक स्तोत्र में तीर्थंकरों का नामोल्लेख करते हुए 8 गाथाओं में यह वर्णन किया गया है। स्थानकों का वर्णन निम्न है: तीर्थंकर नाम - 1. च्यवन स्थान, 2. च्यवन तिथि, 3. जन्मभूमि, 4. जन्मतिथि, 5. पितृ नाम, 6. मातृ नाम, 7. शरीर वर्ण, 8. शरीर माप, 9. लाञ्छन, 10. कुमारकाल, 11. राज्यकाल, 12. दीक्षा तप, 13. दीक्षा तिथि, 14. दीक्षा स्थान, 15. पारणक, 16. दाता, 17. दीक्षा परिवार, 18. छद्मस्थ काल, 19. ज्ञान नगरी,२०. ज्ञान तिथि, 21. गणधर संख्या, 22. साधु संख्या, 23. साध्वी संख्या, 24. शासन देव, 25. शासन देवी, 26 भक्त, 27. दीक्षा पर्याय, 28. आयुष्य, 29. मोक्ष परिवार, 30. अन्तरकाल, 31. निर्वाण लेख संग्रह 195
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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