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________________ तिथि, 32. निर्वाण धाम। विस्तृत जानकारी के लिए पृथक् से इन 32 स्थानकों का कोष्ठक यन्त्र परिशिष्ट में दिया गया हैं वहाँ देखें। स्थानकों का उल्लेख किस ग्रन्थ के आधार से किया गया है? इसका कोई उल्लेख नहीं है। तथापि आगम साहित्य, प्रकीर्णक साहित्य, तीर्थंकर चरित्र (प्रथमानुयोग), आदि विभिन्न ग्रन्थों में जो स्थानकों सम्बन्धि उल्लेख मिलते हैं उनका यहाँ एकीकरण किया गया है। श्री शीलाङ्काचार्य (९वीं शती) रचित चउपन्न-महापुरुष-चरियं में शासन देव, शासन देवी, पारणा कराने वाले और प्रमुख भक्त आदि का उल्लेख न होने से यह निश्चित है कि यह परवर्ती रचना है। श्री शीलाङ्काचार्य रचित चउप्पन्न-महापुरुष-चरियं और कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य रचित त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्रं में वर्णित स्थानकों में अन्तर हो सकता है। जैसे - श्री शीलाङ्काचार्य, देवभद्रसूरि और हेमचन्द्राचार्य ने श्रेयांसनाथ का अन्तरकाल 66,26000 सागरोपम कम माना है, किन्तु त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र संस्कृत में 66,26000 ही माना है किन्तु सम्पादन श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी ने पाठान्तर में 66,36000 स्वीकृत किया है। गुजराती और हिन्दी अनुवादों में 66,36000 ही देखने में आ रहा है। श्री जिनवल्लभसूरि ने चतुर्विंशति जिन-स्तोत्राणि में केवल छः स्थानकों का ही उल्लेख किया है। परवर्ती काल में स्थानकों का वर्णन क्रमशः बढ़ते हुए 170 तक पहुँच चुका था। श्री सोमतिलकसूरि द्वारा संवत् 1387 में रचित सप्ततिशतस्थानप्रकरणम् में 170 स्थानों का वर्णन है। _मुनिराज की पुण्यविजयजी के संग्रह की वर्तमान समय में प्राप्त प्रति में अजितनाथ स्तोत्र से यह वर्णन प्रारम्भ होता है। जबकि आज से 55 वर्ष पूर्व जिस प्रति के आधार से प्रतिलिपि की थी उसमें ऋषभदेव वर्णनात्मक 8 गाथाएँ भी थी। यह कृति अद्यावधि अप्रकाशित थी। अतः पाठकगण इसका रसास्वादन करें, इसी दृष्टि से प्रस्तुत है। सिरि रिसहणाह-थुत्तं पर सिद्धिकए / सिरिरिसह नाह! सव्वट्ठ सिद्धिमुज्झे उं / अवइन्नोसि अउ ज्झं कसिणं चउत्थीइ आसाढे // 1 // नाहि-मरु देवि-तणओ जाओ चित्तट्ठ मीइ बहुलाए। , पंच धणुस्सय देहो कणयपहो तं सि वसहं को // 2 // कु मरोसि पुव्वलक्खे वीसं पुहईसरो य ते वट्ठि। कसिण? मीइ चित्ते सह चउ हिं नरिंदसह से हिं // 3 // सिद्धत्थवणं मि तुमं छढे ण विणिग्गओसि वरिसंते / से यंसाउ तुहासी इक्खुर सो पढ मपारणए // 4 // वाससहस्सं अच्छि य छ उ मत्थो फग्गुणस्स कसिणाए। इक्कार सीइ पत्तो के वलनाणं पुरिमताले // 5 // तुह गणहरा य चुलसी साहु-सहस्सा य साहुणि तिलक्खं / गोमुह -अप्पडि चक्का भर हे सर चक्कि णो भत्ता // 6 // दिक्खाय पुव्वलक्खं आउं चुलसीइ पुव्वलक्खाई। अवसप्पिणि तइयऽरए सेसे गुणनवइ पक्खे हिं // 7 // 196 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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