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________________ तत्पादाम्बुजभृङ्गसेवनपरोपाध्यायनिद्धयुदयो मिथ्यावादविनिर्जितेन विहितोऽर्हच्छासनोद्योतकम्। तच्छिष्यः सरहंसकिङ्करसमोपाध्यायचारित्रक: चक्रेऽहं चरितं प्रदेशिनृपतेर्जेनागमाब्धेर्मुदा॥ 37 // इसके अनुसार पूर्व गुरु परम्परा इस प्रकार बनती है: जिनसिंहसूरि (युग. जिनचन्द्रसूरि के पट्टधर) जिनराजसूरि उ. रामविजय उ. पद्महर्ष (संविघ्न) उ. सुखनन्दन उ. महिमतिलक उ. चित्रकुमार उ. निधिउदय उ. चारित्रनन्दी इस चतुर्दश पूर्व पूजा में उल्लेखित सुखनन्दन और महिमतिलक के बीच में कनककुमार का नाम नहीं मिलता है। पंचकल्याण पूजा रचना प्रशस्ति में इस प्रकार उल्लेख है: तसु आज्ञायें भगति उदार स्तुति कल्याणक संघ हितकार। भ० 10 ग्याननिधिगुणमणिभंडार महिमतिलक पाठक सुखकार। भ० 11 190 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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