________________ 8. इक्कीसप्रकारी पूजा, पूजा, प्राचीन हिन्दी, 1895 बनारस, अप्रकाशित, हस्त. विनय. प्रतिलिपि, . हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा 9. एकादश अङ्ग पूजा, पूजा, हिन्दी, 1895, अप्रकाशित, हस्त. नाहर संग्रह, कलकत्त . 10. चौदह पूर्व पूजा, पूजा, हिन्दी, 1895, अप्रकाशित, हस्त. नाहर संग्रह, कलकत्ता 11. नवपद पूजा, पूजा, राजस्थानी, २०वीं, अप्रकाशित, उल्लेख, जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ. 336 12. पंच कल्याणक पूजा, भाषा-प्राचीन हिन्दी, रचना संवत्-१८८९ कलकत्ता, महताबचन्द के आग्रह से। अप्रकाशित, विनय प्रतिलिपि / 14. पञ्च ज्ञान पूजा, पूजा, हिन्दी, १९वीं, मुद्रित, जिन पूजा महोदधि, हस्त., विनय. प्रतिलिपि 15. समवसरण पूजा, पूजा, प्राचीन हिन्दी, १९१...खम्भात, अप्रकाशित, हस्त. नाहर संग्रह, कलकत्ता 16. नवपद चैत्यनंदन स्तवन स्तुति, गीत स्तवन, प्राचीन हिन्दी, २०वीं, मु., हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा पूजा साहित्य में चारित्रनन्दी ने इक्कीस प्रकारी पूजा, पञ्चज्ञान पूजा, एकादश अङ्ग पूजा, चतुर्दश पूर्व पूजा एवं समवशरण पूजा आदि ऐसे अछूते विषयों को छुआ है जिन पर सम्भवतः आज तक किसी ने लेखनी नहीं चलाई है। मेरे समक्ष प्रदेशी चरित्र, पञ्चकल्याण पूजा, पञ्चज्ञान पूजा और इक्कीस प्रकारी पूजा- चार कृतियाँ है। अत: इन चारों कृतियों के आधार पर ही उनकी गुरु परम्परा और उनके दीक्षान्त नामों पर विचार किया जाएगा। .. कवि ने अपनी पूर्व गुरु परम्परा देते हुए प्रदेशी चरित्र में लिखा है: .. श्रीमत्कोटिकसद्गणेन्दुदुकुलश्रीवत्रशाखान्तरे मार्तण्डर्षभसन्निभः खरतरव्योमाङ्गणे सूरिराट् / श्रीमच्छ्रीजिनराजसूरिरभवठ्ठीसिंहपट्टाधिपः श्रीजैनागमतत्त्वभासनपटुः स्याद्वादभावान्वितः॥ 33 // तत्पादाम्बुजहंसरामविजयः संविग्न सद्वाचकोऽभूज्जैनागमसागरप्रमथनैस्तत्त्वामृतस्वीकृतः। तद्वैनेयसुवाचको गुणनिधिः श्रीपद्महर्षोऽभवत् यः संविनविचारसारकुशलः पद्मोपमो भूतले // 34 // तच्छिष्यः सुखनन्दनो मतिपटुः सद्वाचको विश्रुतस्तत्त्वतत्त्वविचारणे पटुतरोऽभूत्तत्त्वरत्नोदधिः। तद्वैनेयसुवाचकोऽब्धिजनकाद् वादीन्द्रचूडामणिनिध्यानसुरङ्गरङ्गतदृशोऽभूदात्मसंसाधकः॥ 35 // तत्पट्टे महिमाभिधस्तिलकयुक् सद्वाचकोऽभूद्वरः शिष्याणां हितकारको मुनिजनाच्छिक्षाप्रवृत्तौ पटुः। तत्पट्टे कुमरुत्तरो मुनिवरोपाध्यायचित्राभिधः ख्यातोऽभूद्धरणीतले शमयुतो ब्रह्मक्रियायां रतः॥ 36 // लेख संग्रह 189