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________________ उ. चारित्रनन्दी की गुरुपरम्परा एवं रचनाएं अनुसंधान के अंक 35, सन् 2006 के अंक में पृष्ठ 31 से 48 तक महोपाध्याय चारित्रनन्दी विरचित चतुर्दश पूर्व पूजा प्रकाशित हुई है। इसके सम्पादक हैं आचार्य श्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी म.। दुर्लभ एवं महत्वपूर्ण पूजा का सम्पादन कर आचार्यश्री ने साहित्यिक जगत् पर उपकार किया है। . पूजा के पूर्व में कवि की गुरु परम्परा देते हुए सम्पादक ने लिखा है:- 'खरतरगच्छना जिनराजसूरि, तेमना पाठक रामविजय, तेमनी परम्परा क्रमशः सुखहर्ष (?) - पदमहर्ष - कनकहर्ष - महिमहर्ष - चित्रकुमार - निधिउदय (के उदयनिधि ?) - चारित्रनन्दी आम पंक्तिओ परथी उकले छे. आमां क्षति होय तो सुधारी शकाय? संवत 1895 मां आ पूजा कविए रची छे ते तेमणे ज नोध्युं छे.' ___ इस वाक्यावली में प्रयुक्त आमां क्षति होय तो सुधारी शकाय? शब्दों ने ही मुझे प्रेरित किया है। खरतरगच्छ के गणनायक जिनसिंहसूरि के पट्टधर जिनराजसूरि हुए। वे आगम साहित्य, काव्य और न्याय के बेजोड़ विद्वान् थे। जिनराजसूरि की ही शिष्य परम्परा में उपाध्याय निधिउदय हुए। सम्भव है इनका बाल्यावस्था का नाम नवनिधि हो। इन्हीं के शिष्य उपाध्याय चारित्रनन्दी हुए जो चुन्नीजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे। चारित्रनन्दी जैन न्यायदर्शन, काव्य, व्याकरण और पूजा साहित्य के उद्भट विद्वान् थे। उनके समय में काशी में जैन विद्वानों में इनका अग्रगण्य स्थान था। इनका साहित्य सजन काल 1890 से लेकर 1915 तक है। खरतरगच्छ साहित्य कोश के अनुसार चारित्रनन्दी की निम्न रचनाएं प्राप्त होती हैं:१. स्याद्वादपुष्पकलिकाप्रकाश स्वोपज्ञ टीकासह, न्यायदर्शन, संस्कृत, 1914, अप्रकाशित, हस्त. सिद्धक्षेत्र साहित्यमन्दिर, पालीताणा, जिनयशसूरि ज्ञान भं., जोधपुर 2. प्रदेशी चरित्र, भाषा-संस्कृत, सर्ग 9, रचना संवत् 1913, स्थान-स्तम्भ तीर्थ। प्रशस्ति पद्य श्रीसंघाग्रे च [व्या]ख्यानं विशेषावश्यकागमम्। (9.43) अर्थात् संघ के समक्ष विशेषावश्यक आगम का व्याख्यान देते थे। अप्रकाशित, श्री पुण्यविजयजी संग्रह, एल.डी. इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद, क्रमाङ्क 4593 3. सद्ररत्नसार्द्धशतक, प्रश्नोत्तर, संस्कृत, 1909 इन्दौर, अ., ह. आचार्यशाखा ज्ञान भं., बीकानेर, कांतिसागरजी संग्रह 4. श्रीपालचरित्र, कथा चरित्र, संस्कृत, 1908, अप्रकाशित, हस्त. कान्तिविजय संग्रह, बड़ौदा 1910, स्वयं लि. 5. चतुर्विंशति जिन स्तोत्र, स्तोत्र, संस्कृत, १९वीं, अप्रकाशित, हस्त. खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर 6. प्रश्नोत्तर रत्न, प्रश्नोत्तर, हिन्दी, २०वीं, अप्रकाशित, हस्त. सदागम ट्रस्ट, कोडाय 7. चौवीसी - जिन स्तवन चौवीसी, चौवीसी साहित्य, हिन्दी, २०वीं, अप्रकाशित, हस्त. खजांची / संग्रह रा.प्रा.वि.प्र., जयपुर 188 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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