SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आपका स्वर्गवास हुआ। जोधपुर नरेश, उदयपुर नरेश आपके परम भक्त थे। आपके द्वारा प्रतिष्ठित सैकड़ों मूर्तियाँ आज भी प्राप्त हैं। इनके पाट पर क्रमशः जिनमुक्तिसूरि, जिनचन्द्रसूरि और जिनधरणेन्द्रसूरि विराजमान : हुए। वर्तमान में इस शाखा में कोई श्रीपूज्य नहीं है। प्रायः यति समाज भी समाप्त हो चुका है। मूल विज्ञप्ति पत्र इस प्रकार है:- . // श्रीगौतमाय नमः॥ // नमःश्रीवर्धमानाय सर्वकलनाय // / / प्रत्यूहव्यूहप्रमथनाय श्रीसाधुगणाधीशाय नमः / / स्वस्तिश्रीवरवर्णिनी प्रियतमं विश्वत्रयैकाधिपं, प्रत्यूहप्रशमाय कामदमपि प्रेष्ठं परं कामदम् / प्रास्ताकं पुरुहूतपूजितपदं पार्श्वप्रभु पावनं, प्रख्यातं प्रणिपत्य सत्यमनसा कायेन वाचापि च॥१॥ सत्या सेचनके सुजेशलमहादुर्गे पुरे तस्थुषां, चातुर्मास्यविधानसाधनकृते श्रीपूज्यराजामिदम्, विज्ञप्तिच्छदनं प्रमोदसदनं पत्पद्मयोः प्राभृती, कुर्वे प्राकृतबन्धुरं गुरुधियः शश्वत् क्रियासुः कृपाम्॥२॥ द्वाभ्यां युग्मम् सोत्थि सिरिसंतिजिणं पणमिऊण सिरिजेसलमेरुणयरपवरे पुज्जा परमपुज्जा उत्तमा उत्तमुत्तमा जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना लज्जालाघवसंपन्ना सुयपुण्णा जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोहा जियनिद्दा जियइंदिया जियपरीसहा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा भव्ववरपुंडरीया पवरमुहसिरीया सुगहि यचरित्तहिरीया पुण्णचंदविसालकं तवयणा अमियमहु रवयणा करुणा भरमंथर नयणा अमियवरगुणभायणत्तणेण अहरीकयगयणा अणेगच्छेरगकरविचित्त-नायकहणेणरंजियसयलसयणा महियसन्नाण-ज्झाणसप्पहविद्धंसकय हत्थदुट्ठमयणा कयाखिलजयजंतुजयणा. निद्देसट्ठियनरनियरेहिं सययकयभयणा सज्जनगुणाणुरत्ता सयलसुह लक्खण-कलियगत्ता कारुण्णदेसण्णयासत्थीकयसव्वअइदुग्घडसत्थघडण-वक्खाणविहिम्मिविहियपडुनिरुत्ता आइण्णवलेसमुक्किट्ठसूरिगुणजुत्ता चेटुिंगियाईणं लद्धलक्खत्तणेण वित्तासियनियडि धुजधुत्ता नियभिहाण-सई वासइसमरियसुद्धसुत्ता विस्सविस्सपसरियपवरपण्डुरजसेण विजियमत्तसुत्ता अट्ठमिहिमकिरणपमाणपडिपुण्णपुण्णभाला गरिट्ठगुणविसाला सव्वसमयमाणसके लिकरणरायमराला विसयविवागपयडीकरणाकलुससलिणेण विज्झवियवम्मह जलणजाला जियदुद्धरमयणा भवियवर पुण्डरीयविबोहणे -सहस्सकिरणा चंदेवसीयलीकयकसायपरिभवियसयलसत्तगणा वियसियकुमुयनयणा महुरवरवयणरंजियसयणा नाणाइप्पहाणा गुणलयणा सयलसूरिगुणनिहाणा, किं बहुणा? जाव कुत्तियावणब्भूया जिणागमजलनिहिपारगा भट्टारगकुलप्पवरा जंगमजुगप्पहाणभट्टारगा सिरि 108 सिरिसिरिसिरिसिरिसिरिजिणमहिंदसूरिसूरिनायगा सुविणीयपाठगवाचगसाहुसीसगणसपरिवारा तेपई सिरिपल्लियपुरिवराओ दंसणाभिलासी चलणपरियरियापरायणो आणाकारी. सयलसावगजणसंघो सिरि पुजाणं वर भत्तीए अभिवंदिऊण विण्णत्तिं विण्णवइ। तंजहा 184 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy