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________________ "पयुर्षण के धार्मिक कार्य-कलापों सम्बन्धित आप द्वारा प्रेषित कृपापत्र प्राप्त हुआ और इस पत्र के साथ आपश्री ने श्रावकों के नाम पृथक् पत्र भेजे थे, वे उन्हें पहुंचा दिये गये हैं। आपके पत्र से हमें बहुत आनन्द हुआ और शुभभावों की वृद्धि हुई।" "यहाँ भी पयुषण पर्व के उपलक्ष्य में तप, नियम, उपवास और प्रतिक्रमण भी अधिक हुए। कल्पसूत्र की नववाचना हुई। व्याख्यान सुनकर अनेक श्रावकों ने कन्द-मूल, रात्रि-भोजन आदि अकरणीय कार्यों का त्याग किया। बहुत लोगों ने छठ, अट्ठम, दशम, द्वादश आदि अनेक प्रकार की तपस्या की। चम्पा नाम की श्राविका ने मासखमण किया। 71 श्रावकों ने सम्वत्सरी प्रतिक्रमण भी किया। प्रतिक्रमणों के उपरान्त चार श्रावकों ने - गोलेछा भैरोंदास, छोटमल उम्मेदमल कटारिया, गुमानचन्द बलाही, शोभाचन्द सुकलचन्द चौपड़ा ने श्रीफल की प्रभावना की। पंचमी को स्वधर्मीवात्सल्य हुआ जिसमें 300 श्रावकों ने लाभ लिया।" "आषाढ़ सुदि 2, बुधवार से जयशेखरमुनि के मुख से आचारांग सूत्र का व्याख्यान और भावना में महीपाल चरित्र श्रवण कर रहे हैं। बहुत लोग व्याख्यान श्रवण करने के लिए आते हैं। अभी आचारांग सूत्र का लोकविजय नामक द्वितीय अध्ययन के दूसरे उद्देशकों का व्याख्यान चल रहा है। सम्वत्सरिक दिवसों में हमारे द्वारा जो कुछ अविनय-अपराध, भूल हुई हो, उसे आप क्षमा करें, हमें तो आपका ही आधार है। हमारे ऊपर आपका जो धर्म-स्नेह है, उसमें कमी न आने दें। जैसलमेर निवासी भव्य लोग धन्य है, जो आप जैसे श्रीपूज्यों के नित्य दर्शन करते हैं और श्रीमुख से नि:सृत अमृत वाणी सुनते हैं। आपके साथ विराजमान वाचक सागरचन्द्र गणि आदि को वन्दना कहें।" . विक्रम सम्वत् 1897, कार्तिक सुदि सप्तमी, रविवार को जयशेखर मुनि ने यह विज्ञप्ति पत्र लिखा है। इसके पश्चात् राजस्थानी भाषा में श्रीसंघ की ओर से विनती लिखी गई है। इसमें लिखा है कि "आपने इस क्षेत्र को योग्य मानकर पं० नेमिचन्दजी, मनरूपजी, नगराजजी और जसराजजी को यहाँ भेजा है, उससे यहाँ जैन धर्म का बहुत उद्योत हुआ है और व्याख्यान, धर्म-ध्यान का भी लाभ प्राप्त हुआ है। पहले यहाँ पर उपाश्रय का हक और खरतरगच्छ की मर्यादा/समाचारी उठ गई थी। इनके आने से सारी समस्या हल हो गई। आपसे निवेदन है कि पाली क्षेत्र योग्य है। इनको दो-तीन वर्ष तक यहाँ रहने की इजाजत दें ताकि यह क्षेत्र सुधर जाए और बहुत से जीव धर्म को प्राप्त करें।" इसके पश्चात् मारवाड़ी (मुड़िया) लिपि में पाली के 28 अग्रगण्यों के हस्ताक्षर हैं। उनमें से कुछ नाम इस प्रकार है- नाबरीया भगवानदास, संतोषचन्द प्रतापचन्द, अमीचन्द साकरचन्द, गोलेछा भैरोलाल रिखबचन्द, कटारिया शेरमल उम्मेदचन्द, कटारिया जेठमल, लालचन्द हरकचन्द, संघवी रूपचन्द रिखबदास, गोलेछा सागरचन्द आलमचन्द आदि। विशेष :- इस पत्र में चार यतिजनों के नाम आए हैं - पं० नेमिचन्द, मनरूप, नगराज, जसराज के नाम आए हैं। इन चारों के नाम दीक्षावस्था के पूर्व के नाम हैं। खरतरगच्छ दीक्षानंदी सूची पृष्ठ 101 के अनुसार सम्वत् 1879 में फागुण बदी 8 को बीकानेर में श्री जिनहर्षसूरि ने शेखरनंदी स्थापित कर जयशेखर को दीक्षा दी थी। जयशेखर का पूर्व नाम जसराज था और सुमतिभक्ति मुनि के शिष्य थे और जिनचन्द्रसूरि शाखा में थे। 182 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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