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________________ विनयविजयोपाध्याय, मेघविजयोपाध्याय, विजयवर्धनोपाध्याय आदि प्रमुख हैं। इनमें से कतिपय विज्ञप्तिपत्र प्रकाशित भी हो चुके हैं। 2. जैन संघ द्वारा गणनायक एवं आचार्यों को प्रेषित : यह पत्र चित्रबद्ध होने के कारण आकर्षणयुक्त दर्शनीय और मनोरम भी होते हैं। विशाल जन्मपत्री के अनुकरण पर विस्तृत भी होते हैं। इन विज्ञप्ति पत्रों की चौड़ाई 10 से 12 इंच होती है और लम्बाई 10 फुट से लेकर अधिकाधिक 108 फुट तक होती है। टुकड़ों को सांध-सांध कर बंडल-सा बना दिया जाता है। इन विज्ञप्ति-पत्रों में सबसे पहले कुम्भकलश, अष्ट मंगल, चौदह महास्वप्न और तीर्थंकरों के चित्र चित्रित किये जाते हैं। पश्चात् राजा-बादशाहों के प्रासाद, नगर के मुख्य बाजार, विभिन्न धर्मों के देवालय और धर्मस्थान, कुआँ, तालाब आदि जलाशय, बाजीगरों के खेल और गणिकाओं के नृत्य भी चित्रित होते हैं / तत्पश्चात् जैन समाज का धर्म जुलूस, साधुजन और श्रावक समुदाय के चित्र भी अंकित होते हैं। उसके पश्चात् जिन आचार्यों को यह विज्ञप्ति-पत्र भेजा जाता है, उनके चित्र, उनके अधिकाधिक सर्वश्रेष्ठ विशेषण और उनके नाम आदि अंकित कर लेखन प्रारम्भ होता है। आचार्य के गुणों की बहुत प्रशंसा रहती है। उपासकों का वर्णन रहता है। धर्मकृत्यों का वर्णन रहता है और अन्त में आचार्य को अपने नगर में पधारने के लिए विस्तारपूर्वक प्रार्थना/विज्ञप्ति की जाती है। अन्त में उस नगर के अग्रगण्य मुख्य श्रावकों के हस्ताक्षर होते हैं। इन पत्रों में धार्मिक-इतिहास के अतिरिक्त समाज और राजकीय ऐतिहासिक बातें भी गर्भितं होती हैं। ___ इन विज्ञप्ति-पत्रों का प्रारम्भ प्राय: संस्कृत भाषा में और अंतिम अंश देश्य भाषा में होता है। ये विज्ञप्ति-पत्र अधिकांशतः चित्रित प्राप्त होते हैं और कुछ अचित्रित भी होते हैं। बहुत अल्प संख्या में ये पत्र प्राप्त होते हैं। . चर्चित पत्र : प्रस्तुत पत्र प्रथम प्रकार का है। इस पत्र को पाली में स्थित पं० जयशेखर मुनि द्वारा जैसलमेर में विराजमान गच्छनायक श्री पूज्य जिनमहेन्द्रसूरि को भेजा गया है / विक्रम सं० 1897 में लिखित है / इस पत्र की मुख्य विशेषता यह है कि यह प्राकृत भाषा में ही लिखा गया है। अन्त में पाली नगर के मुखियों के हस्ताक्षरों सहित आचार्य के दर्शनों की अभिलाषा, पाली पधारने के लिए प्रार्थना अथवा अन्य मुनिजनों को भिजवाने के लिए अनुरोध किया गया है। इस पत्र में कोई भी चिंत्र नहीं है। पत्र की लम्बाई 9 फुट तथा चौड़ाई 10 इंच है। यह पत्र मेरे स्वकीय संग्रह में है। पत्र का सारांश प्रारम्भ में दो पद्य संस्कृत भाषा में और शार्दूल विक्रीडित छन्द में हैं। प्रथम पद्य में भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है और दूसरे पद्य में जैसलमेर नगर में चातुर्मास करते हुए श्री पूज्य जी के पादपद्मों में प्राकृत भाषा में यह विज्ञप्ति-पत्र लिखने का संकेत किया है। इसके पश्चात् प्राकृत भाषा में शांतिनाथ भगवान् को नमस्कार कर जैसलमेर नगर में विराजमान गणनायक के विशेषणों के साथ गुण-गौरव/यशकीर्ति का वर्णन करते आचार्य जंगमयुगप्रधान श्री जिनमहेन्द्रसूरि जो कि पाठक, वाचक, साधुगणों से परिवृत हैं, से प्रार्थना की गई है कि पाली नगर का श्रीसंघ भक्तिपूर्वक वन्दन करता हुआ निवेदन करता है और लिखता है कि आपके प्रसाद से यहाँ का श्रावक समुदाय सुखपूर्वक है और आप भी साधु-शिष्यों के परिवार सहित सकुशल होंगे। . लेख संग्रह 181
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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