________________ श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी को प्रेषित प्राकृत भाषा का विज्ञप्ति-पत्र विज्ञप्ति-पत्र-लेखन एक स्वतंत्र विधा है। यह विधा साहित्यशास्त्र के अन्तर्गत ही है किन्तु साहित्यशास्त्र में इसका कोई उपभेद प्राप्त नहीं होता है। जैन मनीषियों द्वारा यह विधा पल्लवित एवं पुष्पित होकर स्वतंत्र रूप प्राप्त है। अन्य परम्पराओं में सम्भवतः इसका उल्लेख नहीं मिलता है। विज्ञप्ति-पत्र-लेखन के दो रूप प्राप्त होते हैं 1. जैन मुनिगणों द्वारा प्रेषित और 2. जैन संघ द्वारा गणनायक एवं आचार्यों को प्रेषित / 1. जैन मुनिगणों द्वारा प्रेषित : जैन मुनिगणों द्वारा प्रेषित पत्रों में मुनिजन अपने आचार्यों/गणनायकों को जो संस्कृत, प्राकृत भाषा में पत्र लिखते थे, वे पत्र गद्य-पद्य और गद्यपद्य मिश्रित होते थे। समासबहुल अलंकारों की छटा से युक्त काव्य शैली में लिखते थे। इन पत्रों में मुनिजन अपने चातुर्मासिक धार्मिक क्रिया-कलापों, यात्रा-वृत्तान्तों, प्रवचनों, समाज द्वारा आचरित विशिष्ट कृत्यों और शासन-प्रभावना का वर्णन करते थे। शास्त्र पठन-पाठन का भी अध्ययन-अध्यापन का भी उल्लेख होता था। इन पत्रों का प्रारम्भ तीर्थंकरों, गणधरों और आचार्यदेवों का स्मरण कर वर्तमान गच्छनायक के गुणों का उल्लेख करते हुए, प्रेषणीय स्थान/नगर के गौरव को व्याख्यान करते हुए, नामोल्लेख सहित आचार्यों को सविधि वन्दन करते हुए प्रेषित किया जाता था। तत्पश्चात् प्रेषक मुनिजनों के नाम विस्तार के साथ लिखे जाते थे। एतिहासिक वर्णनों का भी इनमें प्राचुर्य रहता था। अन्त में शुभकामना और आशीर्वाद चाहते हुए पत्र पूर्ण किया जाता था। ये पत्र बड़े विशाल होते थे और लघु भी। विशाल पत्रों में एक विक्रम सम्वत् 1441 में अयोध्या में विराजमान पूज्य लोकहिताचार्य को भेजा गया था। भेजने वाले थे - आचार्य जिनोदयसूरि, जो उस समय अणहिलपुर पाटण में विराजमान थे। इसमें पद्य केवल 86 हैं और शेष भाग गद्य में है। यह गद्य भाग भी महाकवि बाण, दण्डि और धनपाल की शैली का अनुकरण करता है। शब्द छटा भी आलंकारिक है और ऐतिहासिक घटनाओं का भी निर्देशन है। इसमें तीर्थयात्राओं का विशिष्ट वर्णन है। (यह विज्ञप्ति-पत्र मुनिश्री जिनविजयजी द्वारा सम्पादित होकर जैन-विज्ञप्ति-लेख-संग्रह पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है।) इसी प्रकार विक्रम सम्वत् 1484 में गच्छाधिपति जिनभद्रसूरि को लिखा गया पत्र विज्ञप्तित्रिवेणी के नाम से प्रसिद्ध है। उस समय आचार्य पाटण में ही विराज रहे थे। पत्र के लेखक थे - जैन साहित्य और साहित्यशास्त्र के धुरंधन विद्वान् उपाध्याय जयसागरजी। उन्होंने यह पत्र सिंध प्रदेश स्थित मलिक वाहनपुर से लिखा था। (यह विज्ञप्ति-पत्र मुनिश्री जिनविजयजी द्वारा सम्पादित होकर विज्ञप्तित्रिवेणी के नाम से प्रकाशित हो चुका है।) कई लघु विज्ञप्ति-पत्र खण्ड काव्यों के रूप में अथवा महाकाव्य की शैली में या पादपूर्ति काव्यों / के रूप में लिखे गये थे। ये पत्र भी ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टि से अपना विशेष महत्व रखते है। कई विज्ञप्ति-पत्र चित्रकाव्यबद्ध भी होते हैं अथवा मध्य में चित्रकाव्य भी प्राप्त होते हैं। इन पत्र लेखों में 180 लेख संग्रह