________________ प्रधान आनंदराम आनंदराम के सम्बन्ध में इस पत्र में केवल यही उल्लेख मिलता है कि ये विक्रमनगर अर्थात् / बीकानेर नरेश अनूपसिंह जी के राज्याधिकारी और महाराज सुजानसिंहजी के राज्यकाल में राज्यधुरा को धारण करने में वृषभ के समान है अर्थात् बीकानेर के प्रधान थे। बीकानेर के युवराज जोरावरसिंह थे। __ ये किस जाति और किस वंश के थे, इसका कोई संकेत इस पत्र में नहीं है। किन्तु ये स्पष्ट है कि महोपाध्याय रूपचन्द्र के साथ इनका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। राजनीति के अतिरिक्त आनंदराम अन्य भाषाओं का प्रौढ़ विद्वान् था, अन्यथा संस्कृत, प्राकृत, सौरसेनी, मागधी और पैशाची आदि छ: भाषाओं में इनको पत्र नहीं लिखा जाता। महामहोपाध्याय रायबहादुर साहित्यवाचस्पति डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा ने बीकानेर राज्य का इतिहास (प्रथम खण्ड) में आनंदराम के सम्बन्ध में जो भी उल्लेख किए हैं, वे निम्न है: महाराज अनूपसिंह के आश्रय में ही उसके कार्यकर्ता नाजर आनंदराम ने श्रीधर की टीका के आधार पर गीता का गद्य और पद्य दोनों में अनुवाद किया था। (पृष्ठ 284) नाजर आनंदराम महाराजा अनूपसिंह का मुसाहिब था। उसके पीछे व महाराजा स्वरूपसिंह तथा . . महाराज सुजानसिंह की सेवा में रहा, जिसके समय में विक्रम संवत् 1789 चैत्र बदी 8 (1733 की तारीख 26 फरवरी) को वह मारा गया। (पृष्ठ 285) ___जब काफीले वालों ने महाराज सुजानसिंह के दरबार में आकर शिकायत की तो प्रधान नाजर आनंदराम आदि की सलाह से महाराजा ने अपनी सेना के साथ प्रयाण कर वरसलपुर को जा घेरा। (पृष्ठ 297) कुछ ही दिनों बाद नवीन बादशाह (मोहम्मद शाह) ने सुजानसिंह को बुलाने के लिए अहदी (दूत) भेजे, परन्तु साम्राज्य की दशा दिन-दिन गिरती जा रही थी, ऐसी परिस्थिति में उसने स्वयं शाही . सेवा में जाना उचित नहीं समझा। फिर भी दिल्ली के बादशाह से सम्बन्ध बनाये रखने के लिए उसने खवास आनन्दराम और मूधड़ा जसरूप को कुछ सेना के साथ दिल्ली तथा मेहता पृथ्वीसिंह को अजमेर की चौकी पर भेज दिया। (पृष्ठ 298, 299) सुजानसिंह के एक मुसाहब खवास आनन्दराम तथा जोरावरसिंह में वैमनस्य होने के कारण वह (जोरावरसिंह) उसको मरवाकर उसके स्थान में अपने प्रीतिपात्र फतहसिंह के पुत्र बख्तावरसिंह को रखवाना चाहता था। अपनी यह अभिलाषा उसने पिता के सामने प्रकट भी की, पर जब उधर से उसे प्रोत्साहन न मिला तो वह नोहर में जाकर रहने लगा, वहाँ अवसर पाकर उसने वि० सं० 1789 चैत्र बदी 8 (ई० सं० 1733 ता० 26 फरवरी) को आधी रात के समय खवास आनन्दराम को मरवा डाला। जब सुजानसिंह को इस अपकृत्य की सूचना मिली तो वह अपने पुत्र से अप्रसन्न रहने लगा। इस पर जोरावरसिंह ऊदासर जा रहा। तब प्रतिष्ठित मनुष्यों ने महाराजा सुजानसिंह को समझाया कि जो हो गया सो हो गया, अब आप कुँवर को बुला लें। इस पर सुजानसिंह ने कुँवर की माता देरावरी तथा सीसोदणी राणी को ऊदासर भेजकर जोरावरसिंह को बीकानेर बुलवा लिया और कुछ दिनों बाद सारा राज्य-कार्य उसे सौंप दिया। (पृष्ठ 300) इसी इतिहास के अनुसार तीनों राजाओं का कार्यकाल इस प्रकार है:१. महाराजा अनूपसिंह (जन्म 1695, गद्दी 1726, मृत्यु 1755) 2. महाराज सुजानसिंह (जन्म 1747, गद्दी 1757, मृत्यु 1792) 3. महाराज जोराबरसिंह (जन्म 1769, गद्दी 1792) 174 लेख संग्रह